
उज्जैन. होली का त्योहार भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा मथुरा (Mathura) के नजदीक स्थित फालैन गांव (Phalan Village) भी निभाई जाती है, जो लोगों को हैरान कर देती है। यहां होलिका दहन की रात मंदिर का पंडा जलती हुई अग्नि में से निकलता है और उसे कुछ भी नहीं होता।जानिए क्या है ये परंपरा.
फाल्गुन पूर्णिमा की रात जब होलिका दहन किया जाता है तो फालैन और आस-पास के गांव के लोग हजारों कंडे लेकर यहां आते हैं और करीब 25-30 फीट चौड़ी और 10-12 फीट ऊंची होलिका कंडों से तैयार की जाती है। रात को जब होलिका जलाई जाती है तो शुभ मुहूर्त में पंडा जी जलती होली में से निकलते हैं। वर्तमान में मोनू पंडा इस परंपरा को निभा रहे हैं, वे 10 बार जलती हुई होली में से निकल चुके हैं। हैरानी की बात ये है कि जलती होली में से निकलने वाले पंडा का बाल भी नहीं जलता है। इसके पहले पंडाजी कठिन नियमों का पालन करते हैं और विशेष मंत्रों का जाप भी करते हैं।