योगी आदित्यनाथ को मिली बीजेपी में इसकी जगह, जाने यहां

एक प्रचलित कहावत है- वर्तमान अच्छा तभी होता है, जब भूत में नींव मज़बूत रखी गई हो.

 

बात साल 2012 की है. गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए और नरेंद्र मोदी तीसरी बार जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ हुउस जीत के साथ नरेंद्र मोदी ने राज्य की राजनीति के धुरंधरों को ही पीछे नहीं छोड़ा बल्कि दिल्ली की राजनीति में बीजेपी के बड़े नेताओं को एक साइड में खड़ा कर दिया.

 

माना जाता था कि मोदी से पहले तक राष्ट्रीय राजनीति में मुख्यमंत्रियों की एंट्री बहुत कठिन काम है.

 

उस वक्त बीजेपी में राष्ट्रीय स्तर पर अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह जैसे नामों का ही बोलबाला था. हर जगह इनका नाम ही आगे किया जाता था.

 

लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन गए.

 

मोदी के साथ योगी की तुलना

 

10 साल बाद 2022 में इतिहास कुछ हद तक ख़ुद को दोहराता नज़र आ रहा है.

 

यूपी में बीजेपी की लगातार दूसरी बार ऐतिहासिक जीत के बाद कई जानकार सीएम योगी की तुलना पीएम मोदी से कर रहे हैं. हालांकि योगी दूसरी बार ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे जबकि मोदी तीन बार गुजरात के सीएम रहे.

 

लेकिन ये भी सच है कि गुजरात के मुक़ाबले उत्तर प्रदेश बड़ा राज्य है.

 

भारतीय राजनीति में ये कहावत सालों से प्रचलित है कि ‘दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है.’

 

साउथ ब्लॉक में जिन 14 पुरुषों और एक महिला ने प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया है उनमें से 8 उत्तर प्रदेश से आते हैं. मोदी और योगी की तुलना करने वाले इस तर्क को भी अपने बचाव में रखते हैं.

 

2017 और 2022 में अहम अंतर

 

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार जीतने के बाद क्या आने वाले दिनों में मोदी-शाह की बीजेपी में योगी की भी बड़ी भूमिका होगी?

 

इसका जवाब जानने के लिए पाँच साल पहले से शुरुआत करनी होगी.

 

साल 2017 में उत्तर प्रदेश की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी की ‘नैचुरल च्वाइस’ तो नहीं थे. कई नामों पर कई अलग-अलग बैठकों में चर्चा हुई, तब जाकर उनका नाम फाइनल हुआ.

 

बताया गया कि उनको संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त है. बावजूद इसके उनके पाँच साल के पिछले कार्यकाल में केंद्रीय नेतृत्व के साथ अनबन की कई ख़बरें रह-रह कर आती रहीं.

 

लेकिन पिछले साल नवंबर में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जिस तरह से उन्हें दिल्ली बुलाया गया, और प्रस्ताव पेश कराया गया. उससे साफ़ हो गया था कि बीजेपी शासित दूसरे प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से उनका दर्जा अलग है.

 

बाद में पीएम मोदी के सीएम योगी के कंधे पर हाथ रख बातचीत की जो फ़ोटो रिलीज़ की गई थी, उस फोटो ने भी बीजेपी में योगी के बढ़ते क़द की कहानी बिना कुछ कहे ही बयां कर दी थी. चुनावी सभा में पीएम ने ख़ुद ‘यूपी प्लस योगी’ का नारा दिया था.

 

बीजेपी में नंबर दो कौन?

 

इसमें कोई शक़ नहीं की पीएम मोदी बीजेपी में नंबर एक पर हैं. लेकिन नंबर दो पर कौन है?

 

इस सवाल के जवाब में शायद अनायास ही एक नाम ज़ुबान पर आए – अमित शाह का.

 

यूपी में तीन दशक बाद लगातार दूसरी बार सत्ता में बहुमत के साथ चुनकर आने के बाद योगी आदित्यनाथ को भी कुछ विश्लेषक इस पद का दावेदार मान रहे हैं, हालांकि कुछ ‘किंतु-परंतु’ के साथ.

 

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने दशकों से बीजेपी से जुड़ी ख़बरों को कवर किया है. वो फिलहाल यूएनआई में संपादक हैं और कई किताबें लिख चुके हैं. उन्होंने ‘यदा यदा ही योगी’ नाम से किताब भी लिखी है.

 

बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, “इस बार की यूपी की जीत ने उन्हें ख़ुद ही नंबर दो की जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है. बीजेपी के जितने राज्यों में मुख्यमंत्री हैं उन सबको उन्होंने काफ़ी पीछे छोड़ दिया है. अब रेस इस बात की है कि क्या योगी को अमित शाह के जितना स्पेस मिलता है या नहीं?”

 

“लेकिन ये नरेंद्र मोदी को तय नहीं करना है. ये आरएसएस को तय करना है कि नरेंद्र मोदी के बाद नंबर दो पर अमित शाह होंगे या योगी आदित्यनाथ. अभी तक की परिस्थिति में योगी आदित्यनाथ थोड़ी बढ़त बनाए हुए हैं और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है आरएसएस का साथ होना. ”

 

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखती.

 

वो कहती हैं, “भारत की राजनीति में एक बार फिर यूपी सेंटर स्टेज में आ गया है. मोदी वाराणसी से सांसद ज़रूर हैं और ये बीजेपी के लिए यूपी की अहमियत को दर्शाता है. लेकिन अभी तक मोदी को गुजरात के साथ ही ज़्यादा जोड़ कर देखा जाता है. योगी उत्तर प्रदेश से आते हैं. उनका पूरा करियर उत्तर प्रदेश का ही रहा है. और जिस तरह की प्रचंड जीत उन्हें मिली है, उससे यूपी पर फोकस दोबारा से बढ़ गया है. पीएम मोदी के रहते नंबर एक पर योगी तो आ नहीं सकते, लेकिन मोदी के बाद क्या होता है, ये आरएसएस पर निर्भर करेगा.”

 

तो क्या योगी मोदीबन पाएंगे?

 

बीजेपी में नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ दोनों को ही ‘आरएसएस मैन’ कहा जाता है, जबकि अमित शाह को ‘मोदी मैन’ कहा जाता है.

 

ऐसे में आने वाले दिनों में तीनों की भूमिका बीजेपी में क्या होगी, इसकी चर्चा तेज़ है.

 

विजय त्रिवेदी कहते हैं, “नंबर दो की रेस को जीतने के लिए योगी को मोदी बनना पड़ेगा. इसका मतलब है कि सरकार की सभी तरह की ज़रूरतों को पूरा करना पड़ेगा जिसमें सरकार का सेक्युलर चेहरा होने के साथ-साथ उन्हें विकास का चेहरा भी बनना होगा और बदलाव का बीड़ा भी उठाना होगा. जैसा कि मोदी ने पिछले 20 सालों में ख़ुद को बदला है.”

 

योगी आदित्यनाथ ने पिछले पाँच साल में ख़ुद को बदला नहीं है. पाँच साल पहले भी उन्हें हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में देखा जाता था और आज भी वो ख़ुद को वैसा ही दिखाते हैं. वैसे कई लोग इसी को उनकी यूएसपी करार देते हैं.

 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक कुमार हर्ष गोरखपुर से हैं. योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक जीवन का उदय, उत्थान और विस्तार तीनों को उन्होंने बहुत क़रीब से देखा है.

 

वो कहते हैं, “रातों रात नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ का रोल एक जीत से तो नहीं बदलने वाला है. तीनों के रोल अलग-अलग हैं, जो अब तक तय मानकों के हिसाब से ही चल रहे हैं. मोदी, बीजेपी के ‘राजा’ हैं जिनका काम संसाधन जुटाना, प्रतिष्ठा का ध्यान रखना और नीति तय करना है. उसमें अमित शाह का रोल ‘अमात्य’ का है जिनके परामर्श से फ़ैसले लिए जाते हैं और वो हर फ़ैसले को पूरा करने की पूरी कोशिश करता है. योगी आदित्यनाथ का रोल ‘सेनापति’ का है जो इन इच्छाओं के क्रियान्वयन के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.”ए.

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