
सूबे में सरकार किसानों को दस घंटे भरपूर बिजली देने का जहाँ एक तरफ डिंडोरा पीट रही है, तो वही महाकौशल विंध्य के कई ऐसे इलाके है जहाँ बमुश्किल थ्री फेस बिजली चार घंटे ही नसीब हो रही है।
पर्याप्त बिजली न होने से मूंग, उड़द की सिंचाई पर संकट के बादल गहराने लगे है। किसानों का बिजली दफ्तरों में गुस्सा फूट रहा और सुनने वाला कोई नहीं।
किसान पुत्र सीएम शिवराज सिंह इन दिनों प्रदेश के किसानों को पर्याप्त बिजली देने का अपने भाषणों में हर जगह दावा कर रहे है। उसके उलट आग बरसती गर्मी के बीच किसानों के गुस्से की जो तस्वीरें सामने आ रही है। उससे पता चलता है कि सरकारी दावों में कितनी हकीकत है। किसानों सिंचाई के लिए जितनी बिजली मुहैया हो रही है, उसमें भी ट्रिपिंग का झमेला है। एक दिन पहले मझगंवा तहसील में गुस्साएं किसानों ने बिजली दफ्तर भी घेर लिया था। कार्यपालन यंत्री स्तर के अधिकारियों के न पहुँचने तक किसान नारेबाजी भी करते रहे और बिजली विभाग पर मनमानी के आरोप लगाते रहे। जबलपुर के कुण्डम, मंझौली, में लगभग यही हाल है। जिले में प्रदेश का बिजली मुख्यालय होने के बावजूद किसानों की कही कोई सुनवाई नहीं हो रही।
कृषि मंत्री के बयान पर विश्नोई ने भी कसा था तंज
किसानों के बिजली संकट के मुद्दे को खुद कृषि मंत्री उठा चुके है। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये कहा था कि यदि किसानों की यह समस्या नहीं निपटी तो आने वाले वक्त में किसान उन्हें निपटा देंगे। सार्वजनिक हुए इस बयान पर पूर्व मंत्री और जबलपुर के पाटन से विधायक अजय विश्नोई ने भी तंज कसा था। अब राजनैतिक गलियारे में इस बात चर्चा हो रही है कि पर्याप्त बिजली देने के दावे सिर्फ हवा हवाई है।
जबलपुर में करीब 75 हजार हेक्टेयर में उड़द-मूंग
पिछले साल के मुकाबले इस साल जबलपुर जिले में 150 फीसदी ज्यादा उड़द मूंग की फसल बोई गई है। रबी और खरीफ की फसल के अलावा उड़द मूंग का उत्पादन किसानों की अतिरिक्त कमाई का जरिया होता है। लेकिन बिजली संकट किसानों के अरमानों पर पानी फेरता नजर आ रहा है। एक एकड़ में औसतन आठ से दास क्विंटल उड़द-मूंग की पैदावार को किसान अच्छा मानते है,लेकिन अभी तक सिंचाई की कमी से पच्चीस फीसदी फसल प्रभावित हो चुकी है।
नेताओं की चिंता चुनाव में कैसे दिखायेंगे मुहं
पंचायत नगरीय निकाय चुनाव करीब है। अगले साल विधानसभा फिर लोकसभा चुनाव की तैयारियों में भी नेता जुटे है। भाजपा हो या फिर कांग्रेस, दोनों के लिए किसानों का कुनबा भी बड़ा वोट बैंक है। खासकर ग्रामीण अंचलों से जुड़े दोनों दलों के नेताओं की समझ में नहीं आ रहा कि वह किस मुहं से किसानों के बीच जाने की तैयारी करे।