मिश्रित–भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष समिति द्वारा नगर कार्यालय पर भगवान परशुराम जयंती मनाई गई
वक्ताओं ने उनके जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए बताया कि परशुराम भगवान जी का जन्म त्रेता युग ( रामायण काल) में महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था
वह विष्णु के उन्नीसवें अवतार है उनकी माता का नाम रेणुका था
उनकी आरंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र और ऋचीक के आश्रम में हुई भगवान शंकर के आश्रम में भी विद्या प्राप्त की
वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करना चाहते थे
कोंकण,गोवा एवं केरल उन्ही के द्वारा बसाए गए है
भीष्म,द्रोणाचार्य और कर्ण उनके जाने माने शिष्य थे,
पितृ भक्त परशुराम ने पिता की आज्ञापालन के क्रम में अपनी माता का शिरोच्छेद एवं उनको बचाने आये अपने भाइयों का वध कर दिया था परंतु बाद में पिता के वरदान द्वारा सभी को पुनर्जीवित कर दिया था
हैहय वंशाधिपति सहस्त्रार्जुन जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए बलपूर्वक कामधेनु को छीनकर ले गया था
कुपित परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएं काट डाली और सिर धड़ से अलग कर दिया तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थित में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी थी
कुपित परशुराम ने अपने पिता का प्रतिशोध लिया तथा दुश्मनों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिए थे और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया था
उनका जीवन हमे सत्यनिष्ठा की प्रेरणा देता है वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी संतानों में से एक थे उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है न कि प्रजा से आज्ञापालन करवाना
इस अवसर पर समिति के जिला उपाध्यक्ष सुधीर शुक्ल राना, रवि पाण्डेय, अनुराग तिवारी,रत्नाकर मिश्रा,सभासद गण अभय चौरसिया,रामनरेश कश्यप,मनोहर लाल हंस,बालक राम राजवंशी,संजीव कश्यप,पवन राठौर,रवि कश्यप,राजेन्द्र ,आदि समिति के लोग उपस्थित रहे