देश में कोरोना निगेटिव होने के बाद भी मरीज के मल में वायरस जीवित मिल रहे हैं। घर या अस्पताल के आसपास सीवर लाइन में जीवित यानी सक्रिय कोविड-19 वायरस मौजूद है। इन्साकॉग 15 राज्यों के 19 शहरों में सीवर से सैंपल लेकर वायरस की मौजूदगी की निगरानी कर रहा है।राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोड़ा ने बताया कि कोरोना संक्रमण को देखते हुए सीवर निगरानी को बढ़ाने का निर्णय लिया है।
मुंबई के अलावा कर्नाटक, गुजरात और तेलंगाना में हो चुकी है पुष्टि
बड़े-बड़े शहरों में मौजूद इन्साकॉग के अनुसंधान केंद्रों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। देश में पहली बार सीवर लाइन में कोरोना वायरस की पहचान हैदराबाद स्थित सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने की थी।
साल 2020 में जब लॉकडाउन घोषित किया गया तो सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने तेलंगाना हैदराबाद में इसकी जांच की थी। इसके बाद कर्नाटक, मुंबई और गुजरात की साबरमती नदी तक में जीवित या फिर सक्रिय वायरस की पहचान हुई थी। इसलिए अब इन्साकॉग ने कोरोना वायरस के अलग-अलग वैरियंट की पहचान के लिए सीवर निगरानी को अहम माना है।
62 फीसदी के सैंपल में मिले सक्रिय वायरस
पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने हाल ही में एक अध्ययन पूरा किया, जिसके मुताबिक 280 मरीजों के मल से वायरस एकत्रित करने के बाद जब उनकी जीनोम सीक्वेंसिंग की गई तो 62 फीसदी सक्रिय पाए गए हैं।
केंद्र को सौंपी रिपोर्ट : एनआईवी ने रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी है, जिसमें वैज्ञानिकों ने राज्यवार सीवर लाइन की निगरानी बढ़ाने की सलाह दी है। रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर सीवर के पानी से सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग करने का निर्णय लिया।
सीवर के जरिए वायरस प्रसार की पहचान आसान : एनआईवी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव का कहना है कि अपशिष्ट जल के सैंपल की जांच और जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए आसपास के क्षेत्र में मौजूद वायरस के विभिन्न वैरियंट का पता लगाया जा सकता है। महामारी विज्ञान भी इस तरह के संक्रामक रोगों के लिए सीवर निगरानी का पक्षधर है। उन्होंने बताया कि यह वायरस शरीर के विभिन्न अंगों पर असर डाल रहा है। अब तक देश में कई मरीजों में कोरोना का वायरस उनकी आंत या उससे जुड़ी कोशिकाओं में भी मिला है।