
श्रावणमास में जलाभिषेक अधिक फलदायक होता है
यतो वा इमानि भूतानि जायंते ,येन जातानि जीवंति। यत्प्रयंत्यभिसंविशति। यह जगत जिससे उत्पन्न होकर जिसमें स्थित रहते हुए और जिसमें लय को प्राप्त करता है वह जगत का उपादान कारण शिव तत्व है । शेते जगत् अस्मिन्निति शिव: अर्थात जगत का आधार शिव तत्व है । तदैक्षत बहुस्यां प्रजायेय यानी शिव के संकल्प से जगत की उत्पत्ति है शिव की आराधना दो प्रकार से की जाती है सगुण साकार पंचमुख शरीर आकृति विशेष की आराधना और निर्गुण निराकार लिंग की उपासना सगुण साकार शिव महादेव कार्यब्रह्म हिरण्यगर्भ है लिंग आराधना मूर्ति आराधना से श्रेष्ठ है अतः लिंग आराधना ही द्वादश लिंगों के रूप में होती है मूर्ति आराधना बहुत कम जगहों पर है लिंग आराधना प्रथम बार त्रेता युग में भगवान राम ने की थी। भगवान शिव को पशुपति भी कहा जाता है। पशु जीव है सकल जीवों के रक्षक भगवान शिव है।अग्निशोषात्मकम जगत अर्थात अग्नि पिता तथा जल माता है अग्नि देवों तथा जल असुरों का निवास स्थान है। जल का अधिपति वरुण असुरों का स्वामी है। और अग्नि का अधिपति रुद्र देवों का स्वामी महादेव है। दोनों तत्वों का सामरस्य शिव तत्व है सिर में गंगा के रूप में जल तत्व को भगवान शिव धारण करते हैं। अग्नि तत्व भगवान शिव का तृतीय नेत्र है। शिवलिंग प्रकाश स्वरूप जो जाज्वल्यमान अग्नितत्व है। तथा जल तत्व की समरसता का हेतु है। यत: श्रावण मास जलाधिपति वरुण का काल है अतः श्रावण मास में जलाभिषेक अधिक फलदायक होता है।
आचार्य उदित नारायण मिश्र(काशी)