राजनीतिक चुनावी मुद्दा बनी महोली चीनी मिल**

 

नैमिष टुडे- संवाददाता सीतापुर

सीतापुर, महोली सन1932 मे सेठ किशोरीलाल द्वारा निर्मित एशिया की प्रतिस्पर्धा मे अपना नाम दर्ज कराने वाली महोली चीनी मिल आज अपनी हालत पर बदहाली के आंसू बहा रही है । ये चीनी मिल महोली व आसपास के लोगों के लिये मां की तरह थी महोली व आसपास के क्षेत्र मे शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसको इस मिल से लाभ न मिलता रहा हो । किन्तु वक्त की मार व चोरों की मेहरबानी के चलते आज के समय मे इसका वजूद खत्म हो गया है। जिसकी वजह से न जाने कितनो की रोजी-रोटी इस मिल के बंद होने की वजह से चली गई साथ ही महोली का विकास एकदम से ठप हो गया ।
आज अगर ये चीनी मिल चल रही होती तो शायद महोली क्षेत्र की स्थिति कुछ और ही होती ।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब जब चुनाव की सुगबुगाहट होती है तो कई नेता आकर इस बंद पडी चीनी मिल को चलवाने का दावा करके रहते हैं। नगर अभी तक किसी ने इस मिल के लिये कोई ठोस कदम नही उठाया है।
चुनाव के वक्त लोग आते हैं इस मिल को चलवाने का वादा करते हैं जनता को रंगीन सपने दिखाकर वोट लेते हैं फिर चुनाव जीतकर भूल जाते है ।
एक बार फिर से महोली मे इस बंद चीनी मिल पर राजनीति शुरू होने वाली है क्योंकि लोकसभा चुनाव आने वाला है ।इस चीनी मिल को जिसने चाहा जमकर लूटा ।चुनाव के वक्त राजनैतिक लोग आकर मिल चलवाने का थोथा दावा करते हैं और जनता उनके झांसे मे आकर तालियां बजाती है। लेकिन किसी ने आजतक किसी नेता से यह सवाल नही किया कि कई वर्षों से बंद पड़ी इस मिल मे जब कलपुर्जे ही नही बचे हैं। तो मिल कैसे चलेगी। बडे बडे विशाल इंजन चोरों ने गायब कर दिये तो इसका चक्का कैसे घूमेगा।
कुछ बुजुर्ग जानकारों का कहना है कि अगर चीनी मिल मे राजनीतिक लोगों का दखल न होता तो ये चीनी मिल अभी भी चल रही होती तथा पूरा क्षेत्रों विकास की गंगा से लबरेज होती। मिल से रिटायर होने वाले एक बुजुर्ग का कहना है कि जिस समय इस मिल को कॉरपोरेशन द्वारा अधिग्रहीत किया गया था। उस समय इसकी गोदामों मे करोडों की चीनी भरी हुई थी और लोहे का कबाड पडा हुआ था । जिसे बेचकर सरकारी कर्ज चुकाया जा सकता था। मगर सेठ किशोरी लाल के विरोधियों ने ऐसा नही करने दिया। बाद मे चीनी से भरीं गोदामे और कबाड तथा मशीनरी का क्या हुआ ये पूरा क्षेत्र जानता है। इसी वजह से द लक्ष्मी जी शुगर मिल्स, यूपी स्टेट शुगर मिल कॉरपोरेशन मे तब्दील हो गई। सरकार द्वारा मिल को अधिग्रहीत करते ही मिल पर दुर्दिन के बादल मडराने लगे। अंतत: मिल की गति मे लालच की ब्रेक लग गई। बाकी का काम चोरों ने पूरा कर दिया।
फिर से 2024 मे लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। राजनीतिक लोग उडनखटोले, या बडी बडी गाडियों से नगर मे आएंगे तथा मिल चलवाने का बहुत जोर शोर से वादा करेंगे। और तालियों की गडगडाहट मे सुर्खियां बटोरकर चले जाएंगे। और क्षेत्र के निवास मृगमरीचिका की तरह विकास के रेगिस्तान मे पानी की आस लगाये पथिक की भांति अगले चुनाव की तरफ बढ जाएंगे।

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