यह दवाइयां हुई महंगी, देखे लिस्ट

डीजल, पेट्रोल और गैस के बाद अब जीवन रक्षक दवाएं महंगी हो गई हैं। इन दवाओं पर एक अप्रैल से बढ़ी कीमत वसूली जाने लगेगी। कई बड़ी एवं विदेशी कंपनियों पर पेटेंट और विदेश प्रत्यक्ष निवेश की वजह से सरकार भी ज्यादा हस्तक्षेप नहीं कर रही है।इससे मरीजों को सौ रुपये की दवाओं पर 110 से 115 रुपये तक देने पड़ेंगे। 20 रुपये का मिलने वाली पैरासिटामोल का पत्ता अब 22 का और सौ रुपये का मिलने वाला खांसी का सीरप 110 रुपये का बिकेगा। इससे बरेली में करीब 13 करोड़ रुपये प्रतिमाह दवाओं पर अतिरिक्त खर्च करना होगा, क्योंकि बरेली का औसत दवाई कारोबारी 125 करोड़ रुपये प्रतिमाह है।

 

नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथारिटी (एनपीपीए) ने करीब 800 जरूरी दवाओं की कीमत में बढ़ोतरी की मंजूरी दे दी है। जबकि कई दवा कंपनियों ने दवाओं पर मूल्य इतने ज्यादा डाल रखे हैं कि उन पर मोटा कमीशन मेडिकल स्टोर और डाक्टर मिलकर वसूलते हैं। ऐसे में कई जरूरी दवाओं में एनपीपीए ने 10.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने की स्वीकृति दे दी है। इससे बुखार की दवाएं, सांस संबंधी दवाएं, पेनकिलर, इन्फेक्शन, हृदय रोग संबंधी दवाएं, उच्च रक्तचाप, चर्म रोग, खांसी की दवाएं और खून की कमी से संबंधित दवाएं महंगी हो जाएंगीं।

 

पुराने प्रिंट की दवाओं पर नहीं होगा बदलाव

 

एक अप्रैल से दवाओं पर महंगाई तो आ जाएगी, लेकिन पुराने प्रिंट रेट की दवाओं को मेडिकल स्टोर संचालक महंगा नहीं बेच सकेंगे। उन दवाओं पर पुरानी दर के हिसाब से ही ग्राहकों से रुपये लिये जाएंगे। अगर कोई मेडिकल स्टोर संचालक पुरानी दवाओं पर प्रिंट से रेट से ज्यादा रुपये लेता है तो इसकी शिकायत संबंधित अफसरों एवं कैमिस्ट एसोसिएशन से भी कर सकते हैं।

 

कई बार कच्चे माल की कीमतें बढ़ने पर कंपनियां दवाइयों के मूल्य तो बढ़ा देती हैं लेकिन कच्चे माल की कीमत कम होने पर दवाइयों की कीमतें कम नहीं की जाती हैं। एसोसिएशन की ओर से मांग करेंगे कि कच्चे माल की कीमतें कम होने पर दवाइयों के दाम घटाए भी जाएं। इससे आम जन को काफी राहत मिलेगी। दुर्गेश खटवानी, अध्यक्ष, जिला कैमिस्ट एसोसिएशन

 

दवाइयाें का अधिकांश कच्चा माल चीन से आ रहा है। कच्चे माल के हब देश के साथ खासतौर पर बरेली में जरूर बनाएं। यहां कच्चा माल तैयार होगा तो दवाओं पर अनावश्यक रूप से बढ़ोत्तरी नहीं होगी। इसके साथ ही सभी दवाओं को ड्रग प्राइस कंट्रोल अथारिटी को अपने अंतर्गत लेना चाहिए, जिससे दवाओं पर बेहिसाब मूल्य न बढ़ाए जाएं।

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