सीतापुर महामंडलेश्वर स्वामी विद्यानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि हमारे पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी नारदानंद सरस्वती जी महाराज जो यहां के संस्थापक थे। इस आश्रम में उनकी पुण्यतिथि का दिन है जो 30 अक्टूबर से आज इसकी पूर्ण आहुति हुई है आज के दिन आहुति हुई थी तो आज का पर्व उनके लिए यहां मानते आए हैं। दूसरा गुरुदेव व भगवान के आशीर्वाद से श्रीमद् भागवत की कथा भी पूर्ण आहुति हुई है और जो भी नियम होता है वह सब यहां चल रहा है। 1977 से हम पूज्य गुरुदेव महाराज के शिष्य हैं और जगह जगह राजनैतिक क्षेत्र में, धार्मिक क्षेत्र में, सामाजिक क्षेत्र में उनके आशीर्वाद से ही देश व प्रदेश में भारतीय संस्कृति को बढ़ाने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि हम 28 देश में यात्रा कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि कुल 13 अखाड़े हैं और किन्नन 14 अखाड़ा बन गया है। उन्होंने कहा कि अखाड़े वाले चाहते हैं हम स्वामी महामंडलेश्वर बने, परंतु मैंने मना किया। जूना अखाड़े में बहुत से साथी लोग थे और सभी अखाड़े में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा अखाड़ा है। उसके आचार्य पूज्य अवधेशानंद गिरि महाराज जी एवं महासचिव हरी गिरि महाराज जी के आमंत्रण पर मैं सीधा यहां से कल बाल सुंदरी पिपरी में एक जंगल है, उसमे बाल सुंदरी माता का मंदिर बना हुआ है, उनकी भव्य प्रतिमा है, वहां पर लगभग 1500 से 2000 तक नागा सन्यासी उपस्थित हुए और और संत समाज ने मुझे महामंडलेश्वर पद पर चादर उढ़ाकर सम्मानित किया। फोटो के रूप मे एक प्रमाण आया है। मेरा एक संकल्प है, जैसे अभी तक देश विदेश में भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया वैसे ही होता रहेगा और वर्तमान में माननीय योगी जी के संकल्पना को, उनके विचारों को और माननीय मोदी जी के जो भी संकल्प व विचार है, उनके विचारों को आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं। हिंदू संस्कृति के यहां पर संत, मठ, मंदिर है, उनके ऊपर कोई अत्याचार अत्याचार कोई सामाजिक आदमी करना चाहता है तो उसकी सूचना माननीय योगी तक पहचाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि जो भी उत्तरदायित्व अखाड़े वालों ने हमें दिया है और उस उत्तरदायित्व को हमने स्वीकार किया है। सभी अखाड़ों के उत्तरदायित्व को लेकर भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करेंगे।