सीएम योगी के लिए यहां बरसे वोट, जानने के लिए क्लिक करें

सीएम योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सदर सीट पर 55.20% मतदान हुआ. पूरे जिले की बात करें तो 56.23% मतदान हुआ. वोटिंग पैटर्न के जरिए समझते हैं कि योगी आदित्यनाथ का पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का आस-पास की सीटों पर क्या असर पड़ा?पिपराइच में सबसे ज्यादा 62% वोट पड़े

 

गोरखपुर में विधानसभा की कुल 9 सीट है, जिसमें कैम्पियरगंज में 58%, पिपराइच में 62%, गोरखपुर सदर में 55%, गोरखपुर ग्रामीण में 58%, सहजनवा में 61%, खजनी में 52%, चौरी चौरा में 56%, बांसगांव में 49% और चिल्लूपार में 52% वोट पड़े.

 

योगी की सीट पर टूटा 10 साल का रिकॉर्ड

 

छठे चरण में सुर्खियों में रही योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सदर सीट पर 55% वोट पड़े हैं. ये साल 2012 (46.2%) और 2017 (50.8%) की तुलना में काफी ज्यादा है. इसे योगी इफेक्ट कह सकते हैं कि उनके प्रत्याशी बनने पर वोट प्रतिशत बढ़ गया हो.

 

लेकिन एक चौंकाने वाला फैक्ट ये भी है कि गोरखपुर की सभी 9 सीटों में से बांसगांव, चिल्लूपार, और गोरखपुर सदर ऐसी सीट है, जहां पर 9 सीटों की तुलना में सबसे कम वोट पड़े. चिल्लूपार सीट से बाहुबली नेता और योगी से वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी है. यहां वोट प्रतिशत 10 सालों में ज्यादा रहा, लेकिन अन्य सीटों की तुलना में कम.

गोरखपुर में एससी वोटर का प्रभाव रहा है

 

गोरखपुर में 52% शहरी और 48% ग्रामीण आबादी है. 90% हिंदू आबादी के अलावा 9% मुस्लिम हैं. छठे चरण में जिन 10 सीटों पर चुनाव हुए, उनमें से गोरखपुर दूसरे नंबर पर है जहां अनुसूचित जाति का वोट ज्यादा है. यहां 22% एससी आबादी है. साल 2017 में 9 में से 8 सीट बीजेपी के पास थी. इकलौती चिल्लूपार की सीट ऐसी थी जहां से बीएसपी जीती थी.

 

जहां बीजेपी का 55% वोट, वहां से योगी उम्मीदवार

 

गोरखपुर सदर सीट की बात करें तो साल 2017 में यहां से कुल 23 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था. बीजेपी की तरफ से राधा मोहन दास अग्रवाल उम्मीदवार थे. उन्हें सबसे ज्यादा 55.9% वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के उम्मीदवार राणा राहुल सिंह थे. उन्हें 28.1% वोट मिले. तीसरे नंबर पर बीएसपी के जनार्दन चौधरी थे, जिन्हें 11.1% वोट मिले थे.

 

गोरखपुर सदर सीट योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे सेफ मानी जाती रही है. साल 1967 के बाद से बीजेपी और जनसंघ यहां से नहीं हारी. सिर्फ 2002 में एक बार हारी थी. हार अखिल भारतीय हिंदू महासभा के हाथों हुई थी. तब महासभा के उम्मीदवार डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल थे, जिन्हें 39% वोट और बीजेपी उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला को 14% वोट मिले थे. ये तीसरे नंबर पर थे

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