मिट्टी के बर्तन बनाने वालों पर पड़ी बेमौसम बरसात की मार,

मिट्टी के बर्तन बनाने वालों पर पड़ी बेमौसम बरसात की मार,

 

चौपट हुआ धंधा

 

 

बेनीगंज/हरदोई_मौसम की पड़ी मार से पेशेवर कुम्हार बिरादरी अपने धंधे को लेकर खासा चिन्तित हैं।दिवाली में कुछ कमा लेने की हसरतों पर बेमौसम की बरसात ने पानी फेर दिया।बताते चलें कि इलाके के कुम्हार मिट्टी के बर्तनों के जरिये वर्षों से अपनी इस कला को रोटी रोजी का जरिया बना कर चल रहे हैं।इधर मशीनी उत्पाद और आधुनिक तकनीक नें अधिकांश ऐसे लोगों का मोह अपने इस पुस्तैनी धंधे से अलग कर दिया है। लोगों ने अन्य कार्यों की ओर खुद को लगा लिया है।लेकिन ग्रामीण छेत्रों में आज भी मिट्टी के बर्तनों को शादी व्याह,तथा घरों में आवश्यक माना जाता है।जिससे होने वाली मांग की आपूर्ति ग्रामीण बाजारों से उनकी,कमायी का एक मात्र जरिया होती है।इन परिवारों में मौजूद पुरानी पीढ़ी अपने पुस्तैनी धंधे को तमाम दुष्वारियों के बावजूद जिंदा रखे है। बातचीत के जरिए कुछ अपने मन के दर्द बताते है कि आज के समय में ताल पोखरों से बर्तन बनाने के लिए उपयुक्त मिट्टी भी उन्हें पैसे देकर ही मिल पाती है।वहीं मिट्टी के बने दीपों में प्रयोग करने के लिए तेलों में आई तेजी ने मंहगी ही सही पर मोमबत्ती और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों,झालर ,रोशनी तथा बिजली द्वारा प्रज्वलित होने वाले दीप मन को भाने लगे हैं।जिससे मांग में गिरावट आ गयी।और धंधा फीका पड़ गया।बेहतर होता सरकार इन व्यवसयों से जुड़े लोगों की कला को जिंदा रखने और रोजगार परक बनाने के प्रयासों की पेचीदगी को सरल कर ग्राम्य स्तर पर इनके व्यवसाय को स्थापित करने में दिल चस्पी दिखायी होती तो,आज यह भी आधुनिक उपकरणों की प्रतिस्पर्धा में आत्मनिर्भर होते।इधर दीपावली सिर पर दस्तक दे चुकी है और 15 दिन पहले से तैयारियों के लिए चाहिए होते हैं।मिट्टी के दिए,करवा,तथा अन्य सामान के रंगरोगन, सहित तमाम खर्चे इन्हें भयभीत कर रहे हैं।कुम्हार बिरादरी के पेशेवर लोगों के अनुसार वह तमाम सरकारी सिस्टम की ओर निहार रहे हैं।

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