तीव्रता से बढ़ती जनवृद्धि पर कारगर रोक की आवश्यकता*

*तीव्रता से बढ़ती जनवृद्धि पर कारगर रोक की आवश्यकता*

 

लेखिका – डॉ कामिनी वर्मा

लखनऊ *उत्तर प्रदेश*

*हे धरती माँ, जो कुछ मैं तुझसे लूंगा वह उतना ही होगा जिसे तू पुनः पैदा कर सके। तेरे मर्मस्थल या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नही करूंगा*

 

अर्थववेद का यह सूक्त प्रकृति के साथ मानव जीवन का सामन्जस्य  संकल्पित करते हुए  बहुत सी समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करता है।जनसंख्या प्रत्येक देश की बहुमूल्य संपत्ति होती है।इसी से श्रम शक्ति उत्पन्न होती है और देश का विकास होता है। जब तक प्राकृतिक संसाधनों के अनुपात में जनसंख्या का विस्तार होता है ।तब तक प्रकृति को जनसंख्या के पालन पोषण में कोई बाधा नही आती परंतु जब अनुपात का अतिक्रमण करके मनुष्य जनवृद्धि करता है।   तब यह स्थिति जनसंख्या विस्फोट के रूप में नजर आती है । और इस विस्फोट को नियंत्रित किये बिना सामाजिक न्याय, समानता व बेहतर जीवन स्तर प्राप्त नही हो सकता । बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण

भ्रष्टाचार , आतंकवाद, अशिक्षा,पर्यावरण प्रदूषण  जैसी अनेक समस्याओं को जन्म देती है और विकास कार्यो को निष्फल कर देती है।

ऋग्वेद में उल्लिखित है कि

 

*बहुप्रजा निऋति विवेश*

 

अर्थात बहुत प्रजा संकट पैदा करती है । अशिक्षा , महिलाओं में शिक्षा का अभाव ,  भाग्यवादिता, पुत्रैषणा, जागरूकता का अभाव, कम उम्र में विवाह अतिशय जनवृद्धि के कारक होते है।

आज वैश्विक स्तर पर जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि बहुत सी आवश्यकताओ की पूर्ति में असमर्थ है । इसका मूल कारण अनियंत्रित जनसंख्या है । संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की जनसंख्या 7.6 अरब अर्थात 760 करोड़ है , जिसकी 2030 तक 8.6 अरब होने की संभावना है। विश्व मे सर्वाधिक जनसंख्या चीन की 1.41 अरब तथा दूसरे स्थान पर भारत की 130 करोड़ से अधिक है । ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है यदि इसी गति से जनवृद्धि होती रही तो 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.66 होकर पहले स्थान पर हो जाएगी और चीन 1.36 अरब के साथ दूसरे स्थान पर होगा।

प्रकृति के पास सीमित मात्रा में भूमि,जल , वायु, खनिज पदार्थ हैं। परंतु तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या इन संसाधनों का अनियंत्रित दोहन कर रही है । परिणाम स्वरूप जो प्राकृतिक संसाधन सहजता से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते जा रहे थे आज क्षीण होते जा रहे है। प्रकृति का बेहरमी से दोहन होने से प्राकृतिक परिवेश विषैला होता जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग व हाइब्रिड बीजों के अधिक उपयोग से अधिक पैदावार लेने से पृथ्वी की उर्वरता शक्ति कम होती जा रही है। प्रकृति का स्वस्थ वातावरण दूषित होने से मनुष्य अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों से ग्रसित होता जा रहा है।

तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या सम्पूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय है जो हर सेकंड तेजी से बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या से उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट करने व समाधान करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 11 जुलाई 1989 को प्रतिवर्ष *जनसंख्या दिवस* मनाना प्रारम्भ किया।

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