क्या आप सच्चे भक्त हैं, जाने गीता से

चतुर्विधा भजंते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।

 

आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञान च भरतर्षभ। हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी ऐसे

 

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Srimad Bhagavad Gita: सकाम और निष्काम भावों के तारतम्य से गीता में भक्तों के चार प्रकार बतलाए गए हैं :

 

चतुर्विधा भजंते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञान च भरतर्षभ।

 

हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी ऐसे

 

चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं।”

 

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इनमें सबसे निम्र श्रेणी का भक्त अर्थाथी’ है उससे ऊंचा आर्त, आर्त से ऊंचा जिज्ञासु और जिज्ञासु से ऊंचा ज्ञानी है।

 

अर्थार्थी भक्त : भोग और ऐश्वर्य आदि पदार्थों की कामना से जो भगवान की भक्ति में प्रवृत्त होता है वह अर्थार्थी भक्त है। उसका लक्ष्य भगवद् भजन की ओर कम तथा पदार्थों की ओर अधिक रहता है क्योंकि वह पदार्थों के लिए भगवान का भजन करता है न कि भगवान के लिए। यद्यपि वह भगवान को तो धनोपार्जन का एक साधन समझता है, फिर भी भगवान पर भरोसा रख कर धन के लिए भजन करता है इसलिए भक्त कहलाता है।

 

आर्त भक्त : जिसको भगवान स्वाभाविक ही अच्छे लगते हैं और जो भगवान के भजन में स्वाभाविक ही प्रवृत्त होता है किन्तु सम्पत्ति, वैभव आदि जो उसके पास हैं, उनका जब नाश होने लगता है अथवा शारीरिक कष्ट आ पड़ता है तब उन कष्टों को दूर करने के लिए जो भगवान को पुकारता है वह आर्त भक्त कहलाता है। ऐसा भक्त अर्थार्थी की तरह वैभव और भोगों का संग्रह तो करना नहीं चाहता परंतु प्राप्त वस्तुओं के नाश और शारीरिक कष्ट को नहीं सह सकता।

 

जिज्ञासु भक्त : जिज्ञासु भक्त वह होता है जो न तो वैभव चाहता है, न योग-क्षेम की ही परवाह करता है। वह तो केवल एक भगवत तत्व को ही जानने के लिए भगवान पर निर्भर होकर उनका भजन करता है।

 

ज्ञानी भक्त : ज्ञानी भक्त वह है जो भगवत तत्व को जान कर स्वाभाविक ही उनका नित्य-निरंतर भजन करता रहता है। ऐसे ज्ञानी भक्तों की भगवत भक्ति सर्वथा निष्काम होती है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि निष्कपट व्यवहार करने वाले और प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले ही सच्चे भक्त कहलाने के अधिकारी हैं। जिन्हें घर में रहकर भक्ति करनी है, उन्हें घर के प्रत्येक व्यक्ति में अपने समान आत्मा के दर्शन करने चाहिएं। किसी को दुख पहुंचे, ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए। घर के किसी सदस्य को दुख न पहुंचाने का संकल्प लेने वाला व्यक्ति घर में रहकर भी मुक्ति पा सकता है। जो दूसरों की खुशी में सुख खोजता है, वास्तव में वही सच्चा भक्त है।

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