आत्मविश्वास की बुनियाद पर कामयाबी की इमारत

सीतापुर: जहाँ चाह है, वहीं राह है, यह कहावत एस. आर. ग्रुप के चेयरमैन पवन सिंह चौहान पर सटीक बैठती है। सब्जी व चाय का व्यवसाय कर करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाले पवन सिंह चौहान बेरोजगार युवाओं के रोल माडल बन चुके है। आत्मविश्वास की बुनियाद पर कामयाबी की इमारत खड़ी करने वाले पवन सिंह चौहान ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जीवन में आयी चुनौतियों का डट कर सामना किया। पवन की जिन्दगी फिल्मी पटकथा जैसी है। मेहनत और चुनौतियों ने उन्हें आज का सबसे कामयाब इंसान बना दिया। श्री सिंह को भाजपा ने सीतापुर विधान परिषद प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीवार बनाया है। लोगों का मानना है कि श्री सिंह के विधान परिषद पहुँचने पर सीतापुर में विकास और तरक्की के नये द्वार खुलेंगे। श्री चौहान का कहना है कि उनका नैमिष जैसी पावन भूमि वाले सीतापुर जिले से बड़ा पुराना नाता है। उनके लिये लखनऊ और सीतापुर एक जैसे हैं। वे सीतापुर की हर समस्या एवं जरूरत से वाकिफ हैं। उन्होंने सीतापुर को आदर्श जनपद के रूप में विकसित करने का रोडमैप तैयार कर लिया है। उनका सबसे ज्यादा जोर शिक्षा, संस्कार, रोजगार व स्वास्थ्य पर रहेगा, साथ ही वे अयोध्या, काशी एवं मथुरा की तर्ज पर नैमिष-मिश्रिख का विकास करायेंगे। तीर्थ नगरी नैमिषारण्य को देश के पर्यटन मानचित्र पर उभारने के साथ इस पावन तीर्थ नगरी में आये देश-विदेश के पर्यटकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया करायेंगे। केन्द्र एवं राज्य सरकार की तमाम विकास व कल्याणकारी योजनाओं को वास्तविक धरातल पर उतारने का काम करेंगे। वे यहाँ के सांसदों, विधायकों एवं पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिल कर सीतापुर को विकसित करेंगे। भाजपा प्रत्याशी का कहना है कि वे एमएलसी बनने के बाद युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा कर सीतापुर जिले की बेरोजगारी दूर करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। वे व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा देकर हर हुनरमन्द को स्वावलम्बी बनाने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य होगा कि रोजगार की तलाश में घूम रहा युवा खुद तो स्वरोजगार अपनाये, बल्कि अपने माध्यम से सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार देने में कामयाब हो सके। उन्होंने कहा कि जिले में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जागरूकता के अभाव में होनहार आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार निःशुल्क 72 व्यवसायिक कोर्स चला रही है। मामूली प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वरोजगार की दिशा में बेहतर काम किया जा सकता है। पवन सिंह चौहान का कहना है कि उनकी माता श्री ने कठिन दौर में चुनौतियों का साहस के साथ सामना करने का जज्बा भरा। उनकी माँ बेहद कर्मशील महिला थी। उनके व्यवहार का असर हमारे जीवन पर पड़ा। जमीदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले पवन सिंह चौहान का कहना है कि बचपन के दिनों में एक दौर ऐसा आया, जब उन्हें छठी क्लास में सब्जी बेचनी पड़ी। उन्होंने नौवी क्लास में चाय की दुकान खोली। परचून की दुकान से लेकर कपड़े की दुकान तक चला कर जीवन में आई चुनौतियों का डट कर सामना किया। पवन सिंह चौहान का कहना है कि ईश्वर भी उसी का साथ देता है, जो खुद अपने बलबूते पर आगे बढ़ने की हिम्मत रखता हो। इंसान का भाग्य तभी चमकता है, जब वह पूरी लगन, निष्ठा व ईमानदारी से अपने काम के प्रति समर्पित हो। श्री चौहान का कहना है कि एक दौर ऐसा भी था, जब शाम के खाने के लिये उनके पास पैसों का इंतजाम नही होता था, आज वही बड़े आर्थिक साम्राज्य के मालिक बन चुके हैं। आज लगभग 14 हजार लोग उसके संस्थानों में काम करते हैं। अपने पीछे छिपी कामयाबी का राज बताते हुए पवन सिंह चौहान कहते हैं कि सब्जी का व्यवसाय शुरू करने पर जब उनकी माली हालत पहले से कुछ बेहतर हुयी, तो उन्होंने बक्शी का तालाब चौराहे पर चाय की छोटी सी दुकान खोली। उस वक्त वे कक्षा 9 के छात्र थे। उन्होंने लगन और उत्साह के साथ अपना यह नया व्यवसाय शुरू किया। पहले दिन पाँच लीटर दूध, दो किलो चीनी और ढाई सौ ग्राम चाय पत्ती के साथ उन्होंने अपने इस बिजनेस की शुरूआत की। काफी हद तक मेरे इस नये व्यवसाय को लाइफ का टनिंग प्वाइंट भी माना जा सकता है। चाय दूरदर्शन पर मेरा पच्चीस मिनट का इंटरव्यू भी प्रसारित किया गया था, जो मेरे लिये गर्व की बात थी। श्री चौहान का कहना है कि अब तक देश विदेश में तकरीबन 160 सम्मान मिल चुके हैं। शिक्षा, संस्कृति, साहित्य व समाज से जुड़े कार्यो के लिये मुझे अनेकानेक संस्थानों समय- समय पर पुरस्कृत किया है। सम्मानों की इस श्रृंखला मुझे सीतापुर व यूपी रत्न से भी सम्मानित किया गया है। इससे मेरे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होता है। इसके बाद मैंने भट्ठे का काम शुरू किया। एक के बाद एक करके हमने चार भट्ठे शुरू किये । ईश्वर की दया से हमारा काम बहुत अच्छा चल निकला, लेकिन मेरे अन्दर और आगे बढ़ने की चाह थी, लिहाजा चार भट्टों का मालिक होने के बाद भी मैं उस दौरान एक किराये के मकान में ही रहता था। कई वर्षों बाद मैंने लखनऊ शहर में अपना निती मकान बनाया। श्री चौहान का कहना है कि जब उनकी बेटी मेडिकल की परीक्षा के लिये इंटरेंस एग्जाम देने के लिये गई थी। उसके साथ मैं भी गया था। बेटी का सेंटर एक इंजीनियरिंग कॉलेज में था। बेटी पेपर देने के लिये अन्दर चली गई और मैं बाहर बैठा रहा। उस कॉलेज में न तो पीने के पानी की व्यवस्था थी और न कोई पेड़ आदि थे, जहाँ पर धूप से बचाव हो सके। ऐसे में मेरे मन में ख्याल आया कि कैसे कॉलेज हैं, जहाँ किसी तरह की सुविधा नहीं है, साथ ही यह बात भी दिमाग में आई कि आगे चल कर मैं खुद का एक इंजीनियरिंग कॉलेज खोलूँगा। एसआर ग्रुप का कॉलेज शायद देश का एक मात्र ऐसा कॉलेज होगा, जिसकी एक ब्रांच में 8300 बच्चे पढ़ रहे हों। सीतापुर व हरदोई से सैकड़ों बच्चे बस रोज यहाँ पढ़ने आते हैं। पवन सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में जो काम किया है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। बैंक से लोन लेकर उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज खोला, इसके बाद एमबीए कॉलेज खोला। उनके एमबीए कॉलेज का इनटेक प्रदेश में अव्वल है। उनके कॉलेज में ग्यारह स्टेट के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ज्यादातर बच्चे उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल, रांची, मध्य प्रदेश आदि के हैं। जम्मू-कश्मीर की भी बहुत सी लड़कियां हमारे कॉलेज में शिक्षा पा रही हैं। इसके बाद अपना हॉस्टल खोला। छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग हॉस्टल की व्यवस्था की। इसके बाद मैंने एसआर ग्लोबल स्कूल खोला। हमारी एक ही ब्रांच में आठ हजार बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। यह अपने आप में रिकॉर्ड हैं। अब तक किसी स्कूल की एक ब्रांच में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का अध्ययनरत रहना आपने आप में एक अनोखा रिकॉर्ड हैं। हमारे स्कूल में सत्तर किलोमीटर दूर से छात्र-छात्रायें शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। इसके लिये विद्यालय की ओर से सवा दो सौ वाहनों की व्यवस्था की गयी है, ताकि बच्चों को भी किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े। श्री चौहान ने बताया कि उन्होंने एक अवधी फिल्म ‘छल कबड्डी’ बनाई है। पहली अवधी फिल्म ‘नदिया के पार’ बनी थी। उन्होंने बताया कि मेरे परिवार में पत्नी के अलावा बेटी-दामाद और बेटा-बहू हैं। बेटी डा. पल्लवी सिंह आँखों की डॉक्टर है और हर साल हजारों की संख्या में मोतियाबिन्द से पीड़ित गरीब मरीजों का निःशुल्क ऑपरेशन करती है। दामाद शहर के जाने-माने रेडियोलॉजिस्ट है। बेटा इंजीनियर पीयूष सिंह चौहान एसआर ग्रुप के विभिन्न संस्थानों को समाजोपयोगी बनाने में अहर्निश जुटा है। बेटे के सक्रिय होने से मेरे अनुभव को नया जोश एवं बल मिला है। उनके कॉलेज के छात्र और फैकल्टी एक परिवार की तरह हैं। सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी पालन करते हैं। हमने दूसरे कॉलेज की तरह सिर्फस्टूडेंट को नहीं पढ़ाया। हमारे कैम्पस में परिवार बसते हैं। हर छात्र और फैकल्टी उस परिवार का हिस्सा है। हमने गुरू-शिष्य परम्परा को जीवित रखा है। उनका कहना है कि विचार से भाव का प्रभाव ही जिंदगी पर सबसे ज्यादा पड़ता है। शायद मेरी जीवन में ऊर्जा का यही स्त्रोत हैं। मैं अपने सारे कार्य समारात्मक भाव और बड़े मनोयोग से करता हूँ। मुझे मेरे ही कार्यों से ऊर्जा मिलती रहती है। श्री चौहान का कहना है कि उन्हें लगता है कि ये तो अभी शुरूआत है। भगवान ने हमें बड़े काम करने के लिये पैदा किया है, इसलिये यह तो अभी प्रारम्भ भर है। आगे भी ईश्वर हमसे इसी तरह के और कामके बिजनेस के ग्रोथ के लिये अलग से चाय मसाला भी बनाया, जिसकी वजह से से लोग हमारी चाय को खासा पसन्द करते थे। इतना ही नहीं मैने अपनी चाय के दाम दूसरी दुकानों की अपेक्षा कम कर दिये थे, जिसके कारण हमारी दुकान काफी प्रसिद्ध हो गई। एक महीना बीतते-बीतते हालत यह हो गई कि पाँच लीटर दूध के साथ शुरू हुई हमारी दुकान में तकरीबन अस्सी लीटर दूध की खपत होने लगी। मैने अपनी इस चाय की दुकान को कुल मिला कर सात माह तक चलाया। इस दौरान लोगों का नजरिया उनके प्रति काफी बदल गया था। जातियों की जंजीरों में जकड़े हुए समाज में लोग हमसे कहते थे कि क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होने के बाद आप दूसरों के जूठे गिलास धोते हैं, लेकिन हमने कभी भी इस तरह की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम को पूरी लगन और ईमानदारी के साथ करते रहे। इसी ईमानदारी और सेवाभाव का प्रतिफल यह रहा कि मैंने अपनी इस चाय की दुकान से सात महीने में उस दौर में सात हजार रूपये कमाये। पवन सिंह चौहान बताते हैं किउन्होंने चाय की दुकान के साथ फोटो स्टूडियो भी खोला, लेकिन स्टूडियो में कोई खास सफलता नहीं मिली, जिसके बाद उन्होने स्टूडियो बन्द कर दिया। बाद में उन्होंने बीस हजार रूपये का कर्ज लेकर कपड़े की दुकान खोली। तीन साल तक उनकी कपड़े की दुकान बहुत अच्छे से चली। वर्ष 1989 में उनके पिता का देहांत हो गया और इसके बाद वर्ष 1990 में हमने हिन्दुस्तान यूनीलिवर की एजेंसी ली। इसमें हमने इतना अच्छा काम किया कि दूसरी बड़ी कम्पनियों ने भी हमसे हाथ मिला लिया। इनमें ब्रुकवांड, लिप्टन और आईएसपी जैसी कम्पनियाँ शामिल रहीं। इन मल्टीनेशनल कम्पनियों का काम हाथ में आने के बाद मैंने बहुत मेहनत से काम करना शुरू किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि पहले क्षेत्र में पहले स्थान पर आये फिर डिस्ट्रिक में फिर प्रदेश इसके बाद देश में फिर एशिया में टॉप पर आये, इसके बाद हिन्दुस्तान यूनिलीवर ने दिल्ली में हमको सिकन्दर-ए-आजम सम्मान से नवाजा। इस सम्मान में मुझे एक सोने की मोटी चेन व माँ के लिये साड़ी मिली थी।

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