अपनी भाषा का अपमान हम कब तक सहेंगे

अपनी भाषा का अपमान हम कब तक सहेंगे
‌कवि संगम त्रिपाठी

जबलपुर – अपनी भाषा का अपमान हम कब तक सहेंगे। एक व्यक्ति हमारी भाषा का अपमान करता है और हम चुपचाप बैठे देखते हैं और यहां तक हिंदी अखबारों में उसे प्रमुखता से प्रकाशित कर प्रचारित करते हैं बहुत ही सोचनीय विषय है।
आज हम अपनी भाषा को सीखने से कतराते हैं और अंग्रेजी को सीखने के लिए मुंहमांगी कीमत चुका रहे हैं यह अपनी भाषा अपनी बोली अपनी माटी के साथ हम कितना न्याय कर रहे हैं जरा सोचिए।
हमारी सरकारें हिंदी का ढोल पीटने भर का महज कार्य करती है। हिंदी दिवस मना लेने भर से कुछ नहीं होगा। हिंदी को सशक्त और समृद्ध बनाने हेतु उसे राष्ट्रभाषा बनाने का काम करना पड़ेगा। तब हम अपनी भाषा का परचम लहरा सकते हैं।
हिंदी भाषी देश दुनिया की हर भाषा और बोली का सम्मान करते हैं। सभी भाषाएं ज्ञान देती है ऐसे में हिंदी का अपमान करना कहां तक उचित है।
हिंदी दिवस को बड़े लय से हम हिंदी भारत माता के माथे की बिंदी हैं गाते हैं और एक व्यक्ति अपने राजनीतिक फायदे के लिए हिंदी की चिंदी उड़ा देता है आखिर कब तक।

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