
*श्रीमद्भागवत- महापुराण कथा का भव्य आयोजन*
जौनपुर/ मछलीशहर
भटहर उमरी– श्रीमद्भागवत- महापुराण की कथा में ब्रह्मज्ञानी शुकदेव जी महराज चक्रवर्ती सम्राट परीक्षित को संसार की निस्सारता का उपदेश दे रहे हैं। परीक्षित को मालूम है कि उनकी मृत्यु सन्निकट है, वह चिन्तित हैं लेकिन देह का परित्याग करने के पहले आत्मज्ञान प्राप्त कर संसार के बंधन से मुक्त होना चाहते हैं। शुकदेव जी महराज पात्र श्रोता की खोज में हैं। उन्हें महाराज परीक्षित का पता चलता है जो गंगातट पर निराहार रहकर सत्य के चिन्तन में संलग्न हैं। जहाँ पर शुकदेव जी महराज ने परीक्षित को भागवत् कथा सुनाई थी वह शुक तार नाम से प्रसिद्ध है अर्थात जहाँ पर शुकदेवजी महराज ने परीक्षित को तारा था,आत्मज्ञान का उपदेश दिया था। यह स्थान वर्तमान में मुजफ्फरनगर जनपद में स्थित है। आज का सम्पूर्ण प्रवचन अद्वैत वेदान्त के सिद्धांतों पर केन्द्रित था। ब्रह्म और जीव के बीच में माया का परदा है जिसके कारण जीवात्मा अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाती है। मानव जीवन का उद्देश्य क्या है यह यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर श्रीमद्भागवत-महापुराण में है। जो मनुष्य जितेंद्रिय है, जिसने मन को वश में कर लिया है और देहावसान के समय श्रीकृष्ण का स्मरण करता है उसकी मुक्ति सुनिश्चित है।
मौसम प्रतिकूल होने के बावजूद कथा 3 घंटे तक चली और श्रद्धालु भक्त अंत तक उपस्थित रहे। महिलाएं स्वभाव से भक्तिभाव से परिपूर्ण होती हैं अतः श्रोताओं में उनकी संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक थी।
दूर के श्रोताओं में सुजानगंज से श्रीरामसूरत दुबे तथा बभनियांव से श्री सत्यप्रकाश शुक्ल उपस्थित रहे। श्री रामसूरत दुबे भदोही जनपद के पूर्व जिलाधिकारी रहे तथा मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त पद से सेवा निवृत्त हुए। उन्होंने व्यासपीठ पर विराजमान गुरुदेव को माल्यार्पण कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया और व्यासपीठ की अनुमति से मानव जीवन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला।