
कन्नौज/हिमांशु द्विवेदी
अस्पताल संचालकों की लापरवाही से मासूम के सिर से उठा पिता का साया, एंबुलेंस चालक का अमानवीय कृत्य बना चर्चा का विषय
कन्नौज/हिमांशु द्विवेदी
छिबरामऊ
निजी अस्पतालों की लापरवाही एक बार फिर मौत का सबब बनी। छिबरामऊ कोतवाली क्षेत्र के सिकंदरपुर निवासी 26 वर्षीय ट्रक चालक प्रदीप कुमार की सड़क हादसे में घायल होने के बाद इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। इस मौत ने न केवल एक नौ माह के मासूम को पिता के साये से वंचित कर दिया, बल्कि अस्पतालों की कार्यप्रणाली और स्वास्थ्य तंत्र पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
हादसा और इलाज की लापरवाही
प्रदीप कुमार का विवाह वर्ष 2021 में श्वेता देवी से हुआ था। परिवार खुशहाल चल रहा था, तभी 17 सितम्बर को कानपुर के घाटमपुर में उसका ट्रक एक अन्य ट्रक से टकरा गया। प्रदीप गंभीर रूप से घायल हो गया। परिजनों ने पहले उसे हैलेट अस्पताल में भर्ती कराया, किंतु परिचितों के कहने पर उसे छिबरामऊ के सौ सैया अस्पताल रोड स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया।
परिजनों का आरोप है कि वहाँ डॉक्टर ने एक लाख रुपए लेकर “गारंटी के साथ ऑपरेशन” किया, किंतु प्रदीप ऑपरेशन के बाद होश में नहीं आया। हालत बिगड़ने पर आज सुबह उसे उसी अस्पताल की एंबुलेंस से कानपुर रेफर किया गया, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।
अमानवीय एंबुलेंस कांड
मृतक का पार्थिव शरीर वापस लाते समय करमुल्लापुर अंडरपास के निकट एंबुलेंस चालक मृतक के शव को वाहन में बंद कर फरार हो गया। इस अमानवीय कृत्य ने लोगों के बीच रोष फैला दिया। बाद में पुलिस ने एंबुलेंस और शव को बरामद कर चौकी पर लाकर रखा, जहाँ शव आठ घंटे से अधिक समय तक पड़ा रहा। इस दौरान समझौते और पैसों की पेशकश के आरोपों ने मामले को और संदिग्ध बना दिया।
परिजनों के आरोप और समझौते का खेल
मृतक के भाई और भाभी ने आरोप लगाया कि अस्पताल संचालक ने मोटी रकम देकर मामला रफा-दफा करने का प्रयास किया। आरोप यह भी है कि इस तरह की घटनाओं में बिचौलियों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो पीड़ित परिवार की संवेदनाओं से खिलवाड़ कर समझौते करवाते हैं।
पिछले मामले और अस्पतालों की कार्यशैली पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है।
नगर के खल्ला गांव में झोलाछाप द्वारा इंजेक्शन लगाने से युवक की मौत,
पुष्पांजलि अस्पताल में ऑपरेशन के बाद युवक की मृत्यु,
आरआर हॉस्पिटल में नवजात व प्रसूता की मौत,
ऐसे कई मामले पहले सामने आ चुके हैं। जांच के दौरान अस्पतालों के सीसीटीवी फुटेज तक गायब पाए गए। पुलिस और विभागीय अधिकारियों के बीच “सीसीटीवी डीवीआर किसने ली” इस पर टालमटोल होती रही और अंततः मामले समझौते की भेंट चढ़ गए।
कानूनी दृष्टिकोण और जिम्मेदारी
इस घटना को कानूनी रूप से कई गंभीर बिंदुओं पर देखा जा सकता है—
1. भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS)
धारा 106 (1) – लापरवाही से मृत्यु कारित करना।
धारा 125 – लापरवाही से जीवन व व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालना।
2. क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट (नियमन) अधिनियम, 2010
निजी अस्पतालों को निर्धारित मानकों का पालन करना अनिवार्य है, अन्यथा उन पर प्रशासनिक कार्रवाई की जा सकती है।
3. राजकीय चिकित्सकों की निजी प्रैक्टिस
डॉ. अरविंद गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (इलाहाबाद उच्च न्यायालय) मामले में स्पष्ट किया गया है कि सरकारी चिकित्सक निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकते।
प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य द्वारा भी सभी जनपदों को इस पर सख्त निगरानी के निर्देश जारी किए गए हैं।
4. U.P. Medical Council एवं Indian Medical Council Regulations, 2002
चिकित्सकीय आचार संहिता का उल्लंघन पाए जाने पर डॉक्टर के पंजीकरण को निलंबित/रद्द करने का प्रावधान है।
जांच और संभावित कार्रवाई:
मामले के तूल पकड़ने और चिकित्सक की लापरवाही से युवक की जान जाने के गंभीर आरोप लगने के बाद स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया दोपहर बाद
जिला उप चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर के.पी. त्रिपाठी नगला दिलु रोड स्थित उसी निजी अस्पताल में पहुंचे जहां पर प्रदीप कुमार का उपचार किया गया था।
उन्होंने अस्पताल में प्रदीप कुमार बी एच टी
समेत सभी जांच रिपोर्ट देखीं और ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक से युवक को दिए गए उपचार के बारे में जानकारी ली।
उन्होंने कहा है कि निजी अस्पताल में सरकारी चिकित्सक की संलिप्तता की जांच कराई जाएगी। आरोप सिद्ध होने पर संबंधित चिकित्सक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की संस्तुति की जाएगी।
यह पूरा प्रकरण इस तथ्य को रेखांकित करता है कि निजी अस्पतालों की लापरवाही, समझौते की संस्कृति और प्रशासन की ढिलाई मिलकर लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
सौ सैया अस्पताल में तैनात एक चिकित्सक के ऑपरेशन करने की रही चर्चा:
बताया जा रहा है कि यह अस्पताल सौ सैया अस्पताल में तैनात एक सरकारी चिकित्सक का है जो उन्होंने वर्ष अप्रैल 2024 में एक युवक के साथ साझेदारी में खोला था।अस्पताल के उद्घाटन से चंद रोज पहले उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा भी दे दिया था।हालांकि 1 वर्ष बाद उन्होंने फिर से नौकरी पर वापसी की और अब अपनी ड्यूटी के अलावा निजी अस्पताल के मध्य समन्वय स्थापित कर रहे हैं।चर्चा है कि यह ऑपरेशन उन्हीं चिकित्सक की देख रेख में किया गया था।
बारीकी से हो जांच तो कई अस्पतालों पर गिर सकती है गाज:
बताया जा रहा है कि नगर के अस्पतालों में अप्रशिक्षुओं द्वारा मोटी रकम लेकर मरीजों के ऑपरेशन किए जाते हैं जबकि मरीज के तिमार दार को बाहर से सर्जन बुलाने का झांसा दिया जाता है।ऑपरेशन थिएटर के बाहर लगे सीसीटीवी में अप्रशिक्षुओं की पूरी गतिविधि कैद हो जाती है लेकिन सीसीटीवी की बारीकी से जांच नहीं की जाती। अगर इन सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांच की जाए तो कई अस्पतालों पर गाज गिरनी तय है।
हालांकि कई बार वारदातों के बाद डीवीआर ही गायब हो जाते हैं।