
नैमिष टुडे
संवाददाता
तंबौर सीतापुर। एक शाम अटल जी के नाम कौमी यकज़ेहती मुशायरा का आयोजन हुआ। जिसमें शायरों ने कलाम पेश किए। रिज़वान लाइब्रेरी सोसायटी के ज़ेरे एहतिमाम हुए मुशायरे में बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ट अधिवक्ता अयाज़ अहमद अय्यूबी एडवोकेट के मौजूद रहे। मुशायरे में अंतरराष्ट्रीय शायर वासिफ फारूकी, इरम यूनानी मेडिकल कालेज लखनऊ के प्रिंसपिल प्रो डा अब्दुल हलीम कासमी, अधिवक्ता अयाज अहमद अय्यूबी, हैदर अली जाफरी, इंजीनियर हसन अरबी को स्मृति चिन्ह दिए गए। अयाज़ अहमद अय्यूबी ने शुभारंभ करते हुए कहा की हिन्दुस्तानी सभ्यता अनेकता में एकता की है। वासिफ फारूकी ने पढ़ा की परख नही लोगो को सच्चे सोने की, तो बाजार में मैं पीतल हो जाऊ क्या। तीरे गम को मेरा सीना तो नही मिल सकता, हर मुहाजिर को मदीना मिल सकता। प्रो सगीर आलम अजमल बिस्वानी ने पढ़ा कि सुनाऊं में क्या अपने गम का फसाना, सुनेगा भी कब उसको ज़ालिम ज़माना। शकील गयावी ने पढ़ा की जिस कहानी में तेरा ज़िक्र न हो, वह कहानी कोई कहानी है। डा तनवीर अकबाल ने पढ़ा की मोहब्बत प्यार ही इस देश की पहचान है तनवीर, जो हम तुम मिलके बैठेंगे तो हिंदुस्तान महकेगा। कफील बिस्वानी ने पढ़ा की घबरा रहें है हालते दुश्वार देखकर, शोलो की जद है रौनक ए गुलज़ार देखकर। इरफान लखनवी ने पढ़ा की सारी फरसूदा रावायात की तस्वीरों को, शहरे इमा की फसीलो से उतरना होगा। सलीम नदवी ने पढ़ा की कौम ए यकजहती की शमाए जलती रहे, आंधियां चाहे जितनी भी चलती रहे। गीतकार आलोक सीतापुरी ने पढ़ा की सारी दुनिया को यह तरकीब सिखाई जाए, आग नफरत की मुहब्बत से बुझाई जाए। रहबर प्रतापगढ़ी ने पढ़ा की हिंदू खराब है न मुसलमा खराब है, इन सबको जो लड़ाए वह शैता खराब है। अफजल लहरपुरी ने पढ़ा की खाकी वजूद उसका भी पुरनूर हो गया, जिसकी निगाह रहती है नबवी नकुश पर। शादाब काजमी ने यहां कौन है जो मुहब्बतो के जवाब में भी वफा करे, कहा इतना जब्त किसी में है जो आदमी को खुदा करे।
विवेक मिश्रा राज ने पढ़ा की दामन गुलो के भीगे मिले सुबह को, शायद चमन में रात को रोती मिली गज़ल
नैयर शकेब ने पढ़ा की नफरतों के दिए बुझाकर के, अमन के दीप अब जलाना है। सलीम ताबिश ने पढ़ा की कुछ उनकी ख़बर लीजिए कुछ उनका भला कीजिए, जो लोग जमाने में हालात के मारे है। डा शमीम रामपुरी ने पढ़ा की आग छप्पर में लगी हो तो बुझा सकता हू, आग नफरत की लगी हो तो बुझाऊ कैसे। जावेद साहिल ने पढ़ा की एक दिन मोहब्बत में ऐसे दिन भी आयेंगे, वह भी मुकरायेंगे, हम भी मुस्काराएंगे। तनवीर जमाल ने पढ़ा की मुद्दतों भरोसे की लाज रखनी पड़ती है, यू कोई जमाने मोतबर नही होता। मुशायरे का संचालन शादाब काजमी रुदौलवी ने किया। इस मौके पर डा मो जुबैर, डा मो शाहिद, अली हसन आब्दी, मौलाना एखलाक कासमी, मुशायरे के आयोजक मो खबीर नदवी, अकबर अली,
जेड आर रहमानी, एम सलाहुद्दीन, परितोष राजन, विशाल रस्तोगी, बाबर खान, मौलाना जुनैद नदवी, आदि मौजूद रहें।