माँ संकटा देवी में मानी गई सभी मनौती होती है पूर्ण

माँ संकटा देवी में मानी गई सभी मनौती होती है पूर्ण

, :भर्र राजपूतों ने कराईं माँ संकटा देवी की स्थापना

सुधीर मिश्रा

महमूदाबाद, सीतापुर

संकटों का नाश करने वाली देवी मॉं भगवती का नाम संकटा मइया कैसे पड़ा ? यह किसी को पता नहीं है। जानकारों का मानना है कि स्थानीय श्री संकटा देवी मंदिर की स्थापना भर्र राजपूतों द्वारा करायी गयी। कहा जाता है कि भर्र राजपूतों ने कुल देवी पाटन (पाटेश्वरी) के अंश को लाकर स्थापना की थी। राजपूत किसी भी संकट के समय देवी की विधान पूर्वक पूजन किया करते थे। मान्यता है कि देवी मॉं से मानी गयी मनौती अवश्य पूर्ण होती है। मॉं के दरबार पर दूर दराज जनपदों के साथ क्षेत्र के लाखों लोगों की पूर्ण आस्था है।

लाखों भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण करने वाली जगत जननी मां संकटा देवी जी के मुख्य मंदिर एवं परिसर में स्थापित करीब दर्जन भर मंदिरों तथा सरोवर में बने रामेश्वरम् शिव मंदिर की मनोहारी छटा देखते ही बनती है। बासंतिक नवरात्र पर आयोजित होने वाले पन्द्रह दिवसीय वार्षिक मेले में यहां मां के दर्शन कर पुण्य कमाने सीतापुर सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।

संकटा देवी मंदिर की स्थापना भर्र राजपूतों ने की थी। महमूदाबाद में अपने शासन काल के दौरान भर्र राजपूतों ने संकटकाल के दौरान अपनी कुलदेवी मां पाटेश्वरी देवी के अंश की यहां स्थापना करके पूजन-अर्चन प्रारम्भ किया था। भर्र राजपूतों के संकटों का निवारण हुआ। भर्र राजपूतों द्वारा संकटा देवी की बनाई गयी मठिया आज विशाल और भव्य मंदिर के रूप में विकसित है। मंदिर परिसर में प्रवेश करने के तीन द्वारों में से मुख्य द्वार के ऊपर महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्री कृष्ण का भव्य गीता रथ दूर से ही भक्तों को आकर्षित करता है।

मां संकटा देवी के गर्भ ग्रह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग में राधाकृष्ण, श्री राम दरबार, हनुमान जी एवं शंकर जी के मंदिर चारों कोनों पर स्थापित है। वही मुख्य मंदिर के सामने और सरोवर के पश्चिम भगवान बद्री विशाल, जगन्नाथ स्वामी, द्वारिकाधीश के भव्य मंदिरों के साथ संतोषी मां, काल भैरव, अन्नपूर्णा मां, काली मां आदि मंदिरों के साथ सत्य नारायण कथा यज्ञ कुण्ड स्थापित है। मंदिर में तत्कालीन थानाध्यक्ष जयकरन सिंह के सहयोग से बनाये गये हाल में शेष सइया पर लक्ष्मी जी के साथ विराजमान भगवान विष्णु, राम दरबार, शिव परिवार तथा अन्य देवी-देवताओं की मनोहारी मूर्तियां एवं दीवारों पर लिखी गयी प्रेरक सूक्तियां लोगों का बरबस ध्यान खीचतीं है।

मंदिर के दाहिनी ओर के विशाल सरोवर के अन्दर होलीराम राठौर द्वारा बनवाये गये रामेश्वर मंदिर में रौद्र रूप में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा की छटा देखते ही बनती है। इस मंदिर एवं शिव मूर्ति की स्थापना नेपाल देश के शिव मंदिर की तर्ज पर की गयी है। मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष आरके वाजपेयी ने बताया कि आजादी के पूर्व तक संकटा देवी मइया का दरबार एक छोटी मठिया के स्वरूप मंे था। आजादी के बाद भक्तों द्वारा मंदिर के विकास में निरंतर कराये जा रहे निर्माण के चलते मंदिर का स्वरूप पहले की अपेक्षा काफी भव्य हुआ है।

संकटा देवी मंदिर में प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार, पूर्णमासी, शारदीय नवरात्र, विजयादशमी, वासंतिक नवरात्र, शिवरात्रि, रामनवमी के अवसर पर बड़ा मेला लगता है। भारतीय नव संवत्सर के साथ शुरू होने वाले वार्षिक मेले में कई जिलों के दुकानदार अपनी दुकानंे लगाते हैं। बड़ी संख्या में यहां लोग सत्य नारायण की कथा सुनते हैं हजारों की संख्या में बच्चों के मुंडन संस्कार सम्पन्न होते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, कवि सम्मेलन का लोग आनन्द लेते हैं। शानदार अतिशबाजी के साथ पन्द्रह दिवसीय वार्षिक मेले का समापन होता है। सीतापुर के आस-पास के जनपदों सहित पूर्वांचल के कई जिलों के लाखों लोग यहां मां के दर्शन करने प्रति वर्ष आते है। मां संकटा देवी इनकी मनोकामनायें पूर्ण करती है।

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