सूबे की सत्ता के लिहाज से यह चरण सबसे अहम है. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने की चिंता है तो सपा और बसपा को अपने पुराने गढ़ में ताकत दिखाने का मौका. इतना ही नहीं जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों की असल परीक्षा इसी चरण में होनी है.
दिलचस्प बात है कि पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के आजमगढ़ संसदीय सीट पर मतदान होना है तो अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल के मिर्जापुर में मतदान है. जेल में बंद बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी और भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं की किस्मत का फैसला इसी चरण में है.
सातवें चरण में इन जिलों में मतदान
यूपी के सातवें चरण में पूर्वांचल के आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र जिले की 54 सीटें शामिल हैं. आजमगढ़ और जौनपुर जिले को सपा का गढ़ माना जाता है तो मऊ और गाजीपुर में उसके सहयोगी सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और जनवादी पार्टी के प्रमुख संजय चौहान का असर है. वहीं, बाकी जिलों में बीजेपी और उसके सहयोगी अपना दल (एस) का प्रभाव माना जाता है.
2017 के चुनाव में बीजेपी ने कितनी सीटें जीतीं?
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सातवें चरण इन 54 सीटों में से बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 36 सीटें जीती थीं, जिनमें बीजेपी को 29, अपना दल (एस) को 4 और सुभासपा को 3 सीटें मिली थी. वहीं, सपा ने 11 सीटें, बसपा ने 6 सीटें और निषाद पार्टी ने एक सीट जीती थी. कांग्रेस खाता नहीं खोल सकी थी. हालांकि, इस बार ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से नाता तोड़कर सपा के साथ हाथ मिला लिया है तो निषाद पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन कर रखा है.
आजमगढ़ की 10 सीटों में से सपा ने 5, बसपा ने 4 और बीजेपी ने 1 सीट पर कब्जा जमाया था. मऊ जिले की 5 सीटों में से 4 बीजेपी और 1 बसपा ने जीती थी. जौनपुर जिले की 9 में से 4 बीजेपी, एक अपना दल(एस), 3 सपा और 1 बसपा को मिली थी. गाजीपुर की 7 में से 3 बीजेपी, सुभासपा, दो सपा ने जीती थी. चंदौली की चार में से 3 बीजेपी और 1 सपा के खाते में गई थी. वाराणसी की 8 में से 6 सीटें बीजेपी, एक अपना दल (एस) और एक सुभासपा ने जीती थी. भदोही की 3 में से दो बीजेपी और एक निषाद पार्टी को मिली थी. मिर्जापुर की पांच में से 4 बीजेपी और एक अपना दल (एस) तो सोनभद्र जिले की 4 में से 3 तीन बीजेपी और एक अपना दल (एस) ने कब्जा जमाया था.
वाराणसी और आजमगढ़ की लड़ाई
2012 और 2017 के चुनावी नतीजे बताते हैं कि जैसे पीएम मोदी के लिए वाराणसी मजबूत गढ़ है. वैसे ही अखिलेश यादव के लिए आजमगढ़ हैं. 2017 में मोदी का गढ़ वाराणसी की 8 में से 6 सीटें बीजेपी के पास है. जबकि 2012 में महज तीन सीटें थी. वहीं, 2012 में अखिलेश की सरकार बनी थी. तब उन्हें आजमगढ़ की 10 में से 9 सीट मिली और वाराणसी की सिर्फ 1 सीट. 2017 में मोदी लहर में भी अखिलेश यादव ने आजमगढ़ की 5 सीटों पर कब्जा जमाया था, पर वाराणसी में खाता नहीं खुला था.
बीजेपी से गठबंधन करने वाली अपना दल (एस) और सपा के साथ चुनाव लड़ने वाली सुहेलदेव पार्टी का 54 में से कई सीटों पर प्रभाव है. 2012 में अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी की रोहनिया सीट से जीत दर्ज की थी जबकि 5 साल बाद साल 2017 में जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले की एक-एक सीट मिलाकर 4 सीटें जीत ली. वहीं सुहेलदेव ने गाजीपुर से 2 और मोदी के गढ़ वाराणसी से 1 सीट पर जीत दर्ज की.
हालांकि, इस बार पूर्वांचल के सियासी हालात थोड़े बदले हुए हैं. छोटे दलों में सुभासपा ने इस बार समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है. सातवें फेज के 54 में से सपा 45 सीटों पर उम्मीदवार हैं जबकि बाकी 9 सीटों पर सुभासपा और कृष्णा पटेल वाले अपना दल गुट के नेता चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, बीजेपी 47 सीट पर चुनाव लड़ रही है जबकि बाकी 3 सीटों पर अपना दल (एस) और 4 निषाद पार्टी के प्रत्याशी हैं. कांग्रेस और बसपा ने 54-54 सीटों पर उम्मीदवार उतार रखे हैं.
बसपा का भी जनाधार
सातवें चरण में बसपा का भी अपना अच्छा खासा जनाधार है, जिसके दम पर जीत की आस लगाए हैं. सातवें चरण में जिन सीटों पर चुनाव हैं, वहां पर 2017 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें, तो जातिगत समीकरण चरण 90 के दशक से हमेशा प्रभावी रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आखरी चरण के चुनावों में सपा और बसपा के साथ-सथ राजभर, संजय, निषाद और अनुप्रिया की परीक्षा होनी है.
सातवें चरण में 9 जिलों की 54 सीटों पर मतदान है, जिसमें मऊ में सबसे ज्यादा 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है. आजमगढ़ में 16 फीसदी और वाराणसी-जौनपुर में 15-15 फीसदी मुस्लिम आबादी है. सातवें फेज में जिन 9 जिलों में चुनाव है, उसमें सोनभद्र, मिर्जापुर, आजमगढ़, चंदौली और मऊ ऐसी जगहें पर जहां पर दलित वोटर औसतन 29 फीसदी है. सोनभद्र में 41 फीसदी दलित मतदाता है. इसके आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर में यादव वोटर निर्णायक हैं तो मऊ और गाजीपुर में राजभर और चौहान काफी अहम हैं. ऐसे ही वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही में निषाद, कुर्मी और अति पिछड़ी जातियां भी किंगमेकर की भूमिका में है.
सातवें चरण में मंत्रियों की साख भी दांव पर
योगी सरकार में मंत्री रहे दारा सिंह चौहान अब सपा के साथ है और घोसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके अलावा सुहेलदेव पार्टी से ओपी राजभर गाजीपुर के जहूराबाद सीट से मैदान में है, जिनके सामने सपा की बागी सादाब फातिम ताल ठोक रखी है. माफिया धनंजय सिंह जौनपुर की मल्हानी सीट से जेडीयू से चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुकाबला सपा के लकी यादव से है. आजमगढ़ सीट पर आठ बार से विधायक दुर्गा प्रसाद यादव मैदान में है तो मऊ सीट पर विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास जैसे कई बड़े नाम मैदान में हैं. इस आखिरी चरण के चुनाव में योगी सरकार के आधा दर्जन मंत्रियों की साख दांव पर लगी है.
इन 54 सीटों पर आज मतदान
सातवें चरण में रॉबर्ट्सगंज, ओबरा, दुद्धी, दीदारगंज, अतरौला, गोपालपुर, सकलडीहा, सागरी, शिवपुर, मुबारकपुर, सेवापुरी, भदोही, ज्ञानपुर, औराई, मधुबन, घोसी, मोहम्मदाबाद गहना, मऊ, मोहम्मदाबाद, सैयदपुर, चकिया, अजगर,रोहनियां, मछली शहर, मरियाहू, छांबी, मिर्जापुर, मझवां, चुनार, शाहगंज, जौनपुर, मल्हानी,बदलापुर, पिंडारा, आजमगढ़, निजामाबाद, जमानिया, मुगलसराय, फूलपुर- पवई, लालगंज, मेहरगढ़, जाफराबाद, सैदपुर, मरिहां, घोरावल, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट, गाजीपुर, जंगीपुर, जहूराबाद और मुंगरा बादशाहपुर सीटों पर मतदान हो रहा है.