
1929 से काबिज किराएदार को उच्च न्यायालय ने खाली करने का दिया ऐतिहासिक फैसला
अगर आप प्रोपर्टी या मकान मालिक हैं तो यह खबर आपके लिए राहतभरी होने के साथ ही बेहद खास भी है। दरअसल हाई कोर्ट ने मकान मालिकों के अधिकारों को मजबूत करते हुए किरायेदारों को करारा झटका दिया है। अब किरायेदार अपनी मनमानी से भी बाज आ सकेंगे और उनके विरोधी रवैये पर अंकुश भी लग सकेगा। कोर्ट ने यह फैसला एक मकान मालिक की ओर से किराएदार के खिलाफ दर्ज किए गए मामले पर याची के तरफ से उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ शमशेर यादव जगराना सुनवाई करते हुए दिया है।
हाई कोर्ट ने सुनाया यह फैसला-
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में आए एक मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि किराएदार मकान मालिक की ओर से बताए गए वास्तविक कारण के आधार पर उसकी प्रोपर्टी को खाली करे। संपत्ति मालिक अपनी जरूरत पर अपनी प्रोपर्टी को यूज कर सकता है। ये जरूरत किराएदार तय नहीं कर सकता। मकान का कौन मालिक है ये किराएदार तय नहीं कर सकता
मकान मालिक पर नहीं बाध्यता-
जरूरत पड़ने पर मकान मालिक अपनी मर्जी के अनुसार अपनी प्रोपर्टी या मकान को खाली करवा सकता है। इस मामले में न्यायाधीश का कहना है कि मकान खाली करने के लिए प्रॉपर्टी मालिक किराएदार को कोई विशेष कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है।
किराएदार और प्रोपर्टी मालिक के अपने अपने हक हैं। संपत्ति मालिक का दावा टाला नहीं जा सकता। अगर प्रॉपर्टी मालिक अपनी प्रोपर्टी खाली कराने लिए कोई कारण देता है तो किराएदार को वह कारण हर हाल में मानना पड़ेगा। अगर किसी भी कारण से प्रॉपर्टी मालिक को अपनी प्रॉपर्टी खाली करवानी है और अपने यूज में लेना है तो किराएदार से प्रॉपर्टी खाली करने के लिए कभी भी कह सकता है और किराएदार को प्रोपर्टी या मकान को खाली करना होगा।
किराएदार नहीं कर सकता मनमानी-
कोई भी किराएदार अपनी अपनी मनमानी करते हुए यह नहीं कह सकता कि संपन्न होने के कारण मकान मालिक को जगह खाली कराने की जरूरत नहीं है। इसके लिए वाजिब मालिक का विवाद किराएदारनहीं कर सकता। मामले के अनुसार जिला प्रतापगढ के एक किराएदार 1929 से रिहायशी इलाके में कराए पर आकर रह रहे थे, किराएदार से मकान खाली कराने के विवाद में किराएदारी अधिकरण ने किराएदार को मकान खाली करने का आदेश 1986 में दिया , जिसके विरुद्ध किराएदार के अपील पर अपर जिला जज प्रतापगढ ने अधिकरण के आदेश को पलट दिया और किराएदार के पक्ष में आदेश दिया। जिसके विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय में 1992 में मकान मालिक के पैरोकार मकान मालिक का नाम बताते हुए उसके हक में खाली करने हेतु ADJ प्रतापगढ के आदेश के विरुद्ध याचिका दाखिल की जो 2012 में निरस्त हो गयी, और किराएदार उक्त मुकदमा अपने पक्ष में निर्णीत होने को दिखाते हुए, उक्त मकान का मालिक/ स्वामी होने का दावा करने लगा जिस पर पुनः 2022 में उक्त मकान मालिक के तीसरी पीढ़ी के फैज अहमद अर्सी ने पूर्व अधिवक्ता से संपर्क करना चाहा जिनकी मृत्यु हो चुकी थी फिर हाई कोर्ट में कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता गण से संपर्क किया परन्तु सफलता नहीं मिली अंततः जटिल चुनौतीपूर्ण मामले के विशेष विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ शमशेर यादव जगराना के तर्क बहस के बाद हाई कोर्ट (High Court News) ने इस मामले में सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता के इस तर्क स्वीकार करते हुए 1929 से काबिज किराएदार प्रतिवादी के तर्कों को खारिज कर दिया।
मकान मालिक का है ये अधिकार-
एक मकान मालिक को अपनी प्रोपर्टी खाली करवाने के लिए कई तरह के अधिकार भी हैं। वह कभी भी किसी भी स्थिति या जरूरत में किराएदार से मकान खाली करने के लिए कह सकता है। इसे किरायेदार को मानना पड़ेगा। मकान मालिक किराएदार से इसके लिए कुछ भी कारण दे सकता है। किराएदार इस पर कोई सवाल खड़ा कर सकता
यह कहा था याचिका में-
याचिकाकर्ता अपनी याचिका में कहा था कि मकान मालकिन काफी उम्रदराज हो गई है और किसी व्यवसाय करने के योग्य नहीं है। हाई कोर्ट में इस तर्क को खारिज करते हुए मकान मालिक के उस तर्क को सही माना जो मकान खाली कराने के लिए दिया था।
जानिये क्या था मामला-
किरायेदार और मकान मालिक के विवाद आजादी से पूर्व सन 1929 के किरायेदारों से था से जुड़ा यह मामला आज से करीब 96 वर्ष साल पहले का है। एक किराएदार को कुछ रुपए हर महीना के हिसाब से 1929 में मकान किराए पर दी थी। कुछ साल बाद किराएदार ने खाली करने से मना किया तो मकान मालिक ने मकान/खाली करने के लिए किराएदार से कहा और किराएदार अपनी मनमानी दिखाते हुए मकान खाली करने से मना करने लगा। किराएदार अपर जिला जज प्रतापगढ से अपने पक्ष में आदेश पाया था पुनः मकान मालिक गण उच्च न्यायालय में रेंट कंट्रोल याचिका 61/1992 दायर की जो 2012 में निरस्त हो गई पुनः डॉ शमशेर यादव जगराना उक्त मुकदमें की प्राचीन गुम फाइल को खोजने का आदेश करा कर उक्त याचिका को रिट ए 1000061/1992 दर्ज कराते हुए मकान मालिक (मोइजुल्ला जाफरी व अन्य बनाम ए.डी.जे) की तीसरी पीढ़ी के पक्ष में उक्त विवादित मकान को किराएदार को खाली करने का आदेश दिया। वादी मोइजुला के पौत्र पैरोकार शपथ पत्र फैज अहमद अर्सी मुमताज के पुत्र ने तीसरी पीढ़ी में उच्च न्यायालय के पूर्व आदेश को पलटकर न्याय विद्वान अधिवक्ता डॉ शमशेर यादव जगराना के तर्क बहस से प्राप्त किया। केस टाइटल
मोइजुल्ला जाफरी व अन्य बनाम ए.डी.जे