जिले की मिश्रित तहसील में तथाकथित अधिवक्ताओं और अनपढ़ मुंशियों की भरमार

जिले की मिश्रित तहसील में तथाकथित अधिवक्ताओं और अनपढ़ मुंशियों की भरमार

वादकारियों और जरूरतमंदों का जमकर हो रहा है शोषण

 

जिम्मेदारों की अनदेखी है समस्या का मुख्य कारण

नैमिष टुडे
अभिषेक शुक्ला

 

सीतापुर-अगस्त/सामाजिक वातावरण में घुले भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये प्रदेश सरकार के मुखिया जहां नित नई कवाइदें कर रहे हैं वहीं तहसील मिश्रित में व्याप्त भ्रष्टाचार और लूट खसोट कभी समाप्त भी होगी ऐसे कोई आसर नजर नहीं आ रहे हैं।इस तहसील के तमाम सरकारी कार्यालयों की तो बात ही बहुत दूर तहसील प्रांगण में तथाकथित अधिवक्ताओं और अनपढ़ मुंशियों की भरमार छाई हुई है। यहां पर तैनात प्रशासनिक अधिकारी सब कुछ जानकर भी अनजान बने हुये है, मजेदार बात तो यह है । कि इस तहसील में तमांम ऐसे अधिवक्ताओं के तख्त मौजूद हैं जो वर्षों से इस तहसील में बैठ कर विधि व्यवसाय न करके दूसरे कार्यों में लगे हुये हैं, बिचारणीय बिन्दु तो यह भी है कि ऐसे तथाकथित अधिवक्ताओं को वोट की राजनीति के चलते इस तहसील के अधिवक्ता संघ ने अपने संगठन का सदस्य भी बना रखा है इतना ही नहीं इन तथाकथित अधिवक्ताओं के तख्तों पर अनपढ़ मुंशियों की भरमार बनी हुई है ये मुंशी हिंदी में प्रार्थना पत्र तक नहीं लिख पाते है मजेदार बात तो यह है कि इन अनपढ़ मुंशियों ने लिखा-पढ़ी का कार्य कराने और प्रार्थना पत्र आदि लिखवाने के लिये अपने पास पढ़े-लिखे बेरोजगारों को मुंशी के रूप में लगा रखा है, जिनसे लिखा पढ़ी कराकर ये जरुरतमन्दों और वादकारियों को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि मिश्रित तहसील में लगभग 50 प्रतिशत अधिवक्ताओं के मुंशी जहां कक्षा 8 भी पास नहीं है वही तहसील और जिला प्रशासन के पास नियमानुसार मुन्नी होने का इनका कोई रजिस्ट्रेशन तक नहीं है। जानकार बताते हैं कि बीते समय में इस तहसील में एक दो अर्जी नवीस पंजीकृत थे उनमें से कुछ तो बैनामा लेखक बन गये और कुछ अपने अधिवक्ता पुत्रों के साथ लगकर उनका वकालत का धंधा चमकाने में लग गये हैं।कहना ग़लत न होगा कि उक्त दुर्ब्यवस्थाओ के चलते इस तहसील में जरुरतमन्दों और वादकारियों काजमकर शोषण हो रहा है परन्तु तहसील प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी सब कुछ जानकर भी अवैध कमांई के चक्कर में पूरी तरह से अनजान बनकर चुप्पी साधे हुये है । ऐसी दुरूह स्थिति में भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का शासकीय सपना कैसे होगा सरकार-? क्या जनपद न्यायाधीश, प्रदेश शासन और बार काउंसिल आफ उत्तर प्रदेश के जिम्मेदार मिश्रित तहसील में सक्रिय तथाकथित अधिवक्ताओं और अनपढ़ मुंशियों की गंभीरता से जांच कराकर वादकारियों के साथ ही जरूरतमंदों को होने वाले शोषण से मुक्ति दिलाने की पहल करेंगे या प्रदेश के प्रमुख सचिव पत्रकारों और समांचार प्रकाशन के मापदंडों को तय करते हुए शासनादेश ही जारी करते रहेंगे। विचारणीय है कि वर्ष 1947 जब देश आजाद हुआ था उस समय पत्रकार और पत्रकारिता की क्या स्थितियां थी, तत्कालीन समय के पत्रकारों ने देश को आजाद कराने में अपनी क्या कर्तव्य निष्ठा और भूमिका निभाई थी, प्रदेश सरकार क्या इस बात पर भी गौर फरमायेगी। विडंबना है कि लोकतंत्र के कथित चार स्तंभों में से तीन स्तम्भों क्रमशः न्यायपालिका ,कार्यपालिका और विधायिका को संवैधानिक मान्यता देकर संचालित किया जा रहा है परन्तु चौथे स्तंभ प्रेस को संवैधानिक मान्यता न देकर उसको निरन्तर ध्वस्त करने के उक्त तीनों स्तम्भों व्दारा लगातार प्रयास किये जा रहे है यही कारण है कि खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकार आज भी निरीहता के दौर से ही गुजर रहे हैं देश और प्रदेश में सक्रिय तमाम पत्रकार संगठनों की चुप्पी भी ग्रामीण पत्रकारों की दयनीयता का प्रमुख कारण बनी हुई है आखिरकार ऐसा क्यों-? इस यक्ष प्रश्न का कैसे होगा समाधान-?

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