*सम्पादकीय*
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*अलफाज़ तय करते है फैसले किरदारो के, उतरना दिल में है या दिल से उतारना है..*
यू पी में चुनावी नदी का पानी घटने लगा है! सियासत के घाटों से पानी पीछे हटने लगा है! अब नदी में लहरों का उठना कम हो गया है! हवा का रुख भी थम गया है! मन्थर गति से सियासी बाढ़ का पानी स्थिरता का आभास दिलाते शनै: शनै: मन्जिल के तरफ बढ चला है! कहने को तो बहुत कुछ है!लेकिन जनचर्चा है कि चाहत के पानी से लबा लब भरे सियासी तालाबों में आज भी खूब कमल खिला है!वास्तविकता के धरातल पर सच की इबारत तहरीर करना आसान भी नहीं है! मगरूरीयत के माहौल में जहां जातिवादी कुराफाती समाज में जहर दिन रात घोल रहे हैं! जहरीले बोल बोल रहे हैं!ऐसे माहौल में सभ्य समाज का निर्णय ही स्वस्थ लोकतन्त्र के स्वतन्त्र आवरण मे नव निर्माण के लिये राष्ट्र वादी ब्यवस्था के पोसको की ताजपोशी का आगाज
कर सकेगा!सियासी मंचों से जिस तरह के शब्दों का स्तेमाल हो रहा है वह सुनकर आजादी का देवता भी आज रो रहा है!आखिर क्या हो गया इसदेश के रहनुमाओं को जिस देश की उत्कृष्टता से परिपूर्ण सौम्य बाणी की गर्जना से दुनियां के लोग दहशत खाते थे! बिद्वता का लोहा मानते थे! संन्यासियों के सादगी भरे जीवन को देखकर उनका अनुसरण करते थे! भारत को दुनियां का सर्वोत्तम देश मानते थे!राम की लोकप्रियता कृष्ण का उपदेश पहचानते थे! बिश्व गुरू होने का गौरव पा चुके देश को महान जानते थे!आज उसी देश के सियासतदारों की भाषा सड़क से लेकर संसद तक जिस तरह की निकल रही है वह सोचने को मजबूर कर रही है।आखिर हम किस परिवेश में पल रहे हैं! जहां सत्ता के लोभ में बिक्षोभ का जहरीला वातावरण का दिन-रात सम्वरण किया जा रहा है।चुनाव में मन-मुटाव आम बात रही है! लेकिन लोकतांत्रिक ब्यवस्था के दायरे में!आज कल सब कुछ बदल गया है! बिकाश के मुद्दे गायब है!सियासत मे सब खेल हो रहा नाजायज है! असंसदीय भाषा का तमाशा सारा देश देख रहा है!भारत का बिखन्डन करने में लगी आसुरी शक्तियों के खेल में सियासतदारो की रेलम पेल देखने लायक है! उन्मादी ताकतों ने कर्नाटक से शुरू कर दिया है तबाही का नाटक! अभी तो ए आगाज है! अन्जाम खुदा जाने!!आजादी के बाद से बिघटन कारी वायरस कैंसर बन चुके हैं! उनके समूल नाश का इंतजाम नहीं हुआ तो यह देश एक बार फिर बिद्वेश की आग में झूलस कर तालिबान की राहपर चल निकलेगा!दुनियां में वर्चस्व की जंग जारी है! सारी महान शक्तियां आपस में उलझ कर रही बमबारी है! धरती धरा से मानव के बिनाश का इतिहास मिटने के कगार पर है! परमाणु युद्ध का खतरा बरकरार है! दिन रात बढ़ रहा तकरार है!हर तरफ हलचल है! माहौल बदल रहा पल पल है!निकट भविष्य में भारत के तकदीर की शमशीर भी बदल सकती है?जब दुनियां ताकत का लोहा मनवाने के लिये बेचैन है! ऐसे में कमजोर सियासतदारों के हाथ सत्ता की चाभी सौंपना आत्म हत्या करने जैसा ही होगा?।उत्तर प्रदेश के परिवेश में सियासतदारों के द्वारा पैदा किया गयाजातिवादी निवेश उन्मादी बिद्वेश की नींव पर सियासी महल बनाने को आतुर है।अभी से माहौल बन गया भयातुर है!आने वाले कल में होने वाली ताजपोशी के लिये जनमत बहुमत के साथ इतिहास बदलती है तब तो शायद बिगड़े माहौल में बन रहे मसायल पर अंकुश लग सके!वर्ना फिर वही होगा जिसकी कल्पना भी लोग नहीं कर सके हैं?।समय के साथ बदलिये सोचिये समझिये फिर फैसला किजीये! आने वाला समय आप के फैसले का इन्तजार कर रहा है?आप की थोडी भूल चूक मां भारती का कलेजा कर देगी दो टूक!निर्णय आप के हाथ!!
कल फिर मिलेंगे न ई सोच नये जज़्बात के साथ?
जयहिंद🙏🏻🙏🏻