
इलायची: चाहे बिरयानी का ज़ायका बढ़ाना हो या खीर की मिठास, इलायची का प्रयोग करके हर देसी व्यंजन में चार चांद लगाये जा सकते हैं.
इलायची को मसाले के अलावा दवायें, तेल और इत्र बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. इसमें मौजूद औषधीय गुण मुंह के इंफेक्शन से लेकर पेट की पथरी तक कई समस्याओं का अचूक समाधान करते हैं. इलायची के इन्हीं खासियत के कारण विदेशी बाजारों में भी इसकी काफी मांग रहती है. यही कारण है कि दक्षिण भारत समेत कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के किसान इसकी खेती बडे़ पैमाने पर करते हैं.
इलायची की खेती
भारत के गर्म और नमी वाले इलाकों में इलायची की खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. साथ में छायादार और हवा में नमी वाले स्थानों पर भी इसकी खेती करने के अलग ही फायदे हैं. इलायची की खेती के लिये जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अनुकूल रहती है. हालांकि जीवांशयुक्त लाल बलुई मिट्टी में भी इसकी अच्छी उपज ले सकते हैं. इसकी खेती के लिये उन्नत किस्म के नये बीजों से नर्सरी तैयार करनी चाहिये. किसान चाहें तो इलायची पौधे खरीदकर खेत में उनकी रोपाई कर सकते हैं.
- खेत की मेड़ों पर 2 फीट की दूरी पर इसकी रोपाई कर सकते हैं.
- इसकी खेती के लिये जमीन पर गहरी जुताई और समतलीकरण करके खेत में मेडें बनायें.
- समतल जमीन पर पौधों की रोपाई के लिये खेत में गोबर की खाद के साथ उर्वरक जरूर डालें.
- इसकी नर्सरी तैयार करने के लिये उन्नत किस्म के बीजों को चुनकर उनका बीजोपचार करें.
- नर्सरी में पौध तैयार करने पर करीब 1 किलोग्राम बीजदर का प्रयोग करें.
- बीजोपचार के बाद नर्सरी में 10 सेमी. की दूरी पर बीजों को बोयें.
- नर्सरी में बीजों का अंकुरण होने तक उन्हें पुआल या घास-फूस से ढंक देना चाहिये.