भ्रष्टाचार के महाबली बने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य – सुलतानपुर के जनप्रतिनिधि मौन, प्रतापगढ़ में भ्रष्टाचार की फाइल चिल्ला-चिल्लाकर दे रही गवाही

भ्रष्टाचार के महाबली बने मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य – सुलतानपुर के जनप्रतिनिधि मौन, प्रतापगढ़ में भ्रष्टाचार की फाइल चिल्ला-चिल्लाकर दे रही गवाही

मुख्यमंत्री ने जहां भ्रष्टाचार पर दिखाई थी सख्ती, वहीं सुलतानपुर में नतमस्तक दिखे जनप्रतिनिधि
प्रतापगढ़ में सीएम योगी के हस्तक्षेप से हटे थे प्राचार्य, लेकिन सुलतानपुर में चुप्पी क्यों?
दवाओं में धांधली, मरीजों की जान से खिलवाड़, गार्डों की गुंडई, प्राचार्य की मनमानी पर कोई नहीं सवाल!

सुलतानपुर  राजकीय मेडिकल कॉलेज सुलतानपुर, जो कभी जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था का गौरव बनने का सपना देखा गया था, आज भ्रष्टाचार और अव्यवस्था की भेंट चढ़ चुका है। यहां के प्राचार्य डॉ. सलिल श्रीवास्तव पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, लेकिन जिले के किसी जनप्रतिनिधि ने अब तक उनके खिलाफ आवाज़ उठाना जरूरी नहीं समझा। यह वही डॉ. श्रीवास्तव हैं जिन्हें प्रतापगढ़ में उनके भ्रष्टाचार के कारण सांसद रहे संगम लाल गुप्ता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत करके हटवा दिया था। परंतु अब जब वही प्राचार्य सुलतानपुर में खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहे हैं, तो यहां के जनप्रतिनिधि—चाहे सत्तापक्ष के चार विधायक हों या एक सांसद, या विपक्ष का एक विधायक – सभी खामोश हैं।
सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की दुहाई देने वाले जनप्रतिनिधि आज एक भ्रष्ट अधिकारी के समक्ष नतमस्तक दिख रहे हैं। न तो किसी ने शासन को पत्र लिखने की हिम्मत जुटाई, न ही कॉलेज में चल रहे वित्तीय और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की जांच की मांग की। जनता के पैसे की खुली लूट, मरीजों की उपेक्षा और इलाज के नाम पर खानापूरी के बावजूद एक भी जनप्रतिनिधि ने सवाल उठाना जरूरी नहीं समझा। क्या यही है सरकार की जवाबदेही ? क्या यही है “जीरो टॉलरेंस” की सच्चाई ? डॉ. श्रीवास्तव द्वारा मेडिकल कॉलेज में एक फार्मा कंपनी विशेष की दवाओं को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों पर दबाव बनाया जा रहा है। इमरजेंसी से लेकर ओपीडी तक आदेश है कि कोई भी डॉक्टर बाहर की दवा मरीज को न लिखे। स्थिति यह है कि इमरजेंसी में चेस्ट पेन और लिवर पेन जैसी गंभीर स्थितियों में भी सरकारी इंजेक्शन कारगर नहीं हैं और बाहर की दवा लिखने की अनुमति नहीं है। ऐसे में मरीज यदि घर पहुंचकर दम तोड़ दे, तो भी डॉक्टर और प्राचार्य पर कोई जवाबदेही नहीं बनती। यह जनस्वास्थ्य के साथ किया जा रहा गंभीर खिलवाड़ है। प्राचार्य के इशारे पर कार्य कर रहे सुरक्षाकर्मी भी बेलगाम हो चुके हैं। मरीजों के तीमारदारों के साथ गाली-गलौज, मारपीट और खुलेआम धमकियां अब सामान्य बात हो गई हैं। यदि कोई तीमारदार डॉक्टर या स्टाफ की लापरवाही पर सवाल करता है, तो सीधे ‘सरकारी कार्य में बाधा’ का केस दर्ज कराने की धमकी दी जाती है। मेडिकल कॉलेज अब आमजन के लिए नहीं, बल्कि प्राचार्य और उनके चहेतों के साम्राज्य का अड्डा बन चुका है। इतना ही नहीं, प्राचार्य द्वारा सरकारी पद का दुरुपयोग कर निजी संपत्ति अर्जित करने के भी गंभीर आरोप हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि किस तरह से जनहित के धन का निजी हित में उपयोग हो रहा है। इन सभी घटनाओं पर जिले के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी सवालों के घेरे में है। क्या सुलतानपुर की जनता के साथ यह विश्वासघात नहीं है? क्या विधायक और सांसदों की जिम्मेदारी सिर्फ नारों और मंचों तक सीमित रह गई है ? आज जरूरत है कि आम नागरिक आगे आए, शासन तक यह आवाज पहुंचे और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित हो। यदि प्रतापगढ़ में मुख्यमंत्री के संज्ञान के बाद कार्यवाही हो सकती है, तो सुलतानपुर में क्यों नहीं….?

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