विष्णु सिकरवार
आगरा। प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 1.47 लाख शिक्षात्रों के हाथ चुनावी साल में भी खाली रह गए वहीं यदि जनपद आगरा की बात की जाए तो 2500 शिक्षामित्र कार्यरत हैं। अक्टूबर माह में उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के बैनर तले शिक्षामित्रों ने लखनऊ के इको गार्डन में धरना दिया था सचिव द्वारा सचिव बेसिक शिक्षा द्वारा शिक्षामित्र के प्रति मंडल को वार्ता के लिए आमंत्रित किया और एक कमेटी बनाने का आश्वासन दिया था। 12 जनवरी 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को निर्देश दिया गया था कि शिक्षामित्र को जीवकोपार्जन हेतु सम्मानजनक मानदेय दिया जाए और तीन महीने में इस पर निर्णय लिया जाए। मौजूदा समय में शिक्षामित्रों का मानदेय बहुत कम है इसलिए सरकार एक कमेटी घठित कर मानदेय बृद्धि पर निर्णय ले हाई कोर्ट के निर्देश के बाद 18 जनवरी 2024 को बेसिक शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में लखनऊ में शिक्षा मित्र संघ के नेताओं के साथ बैठक हुई। शिक्षामित्रों को उम्मीद थी उनके पक्ष में जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा लेकिन कोई निर्णय नहीं हो सका अब लोकसभा के चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है शिक्षामित्रों की निराशा बढ़ती जा रही है। क्योंकि अब लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद अगले तीन महीने तक कुछ नहीं होना है उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिला अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह छौंकर का कहना है कि शिक्षामित्रों को सरकार से बहुत उम्मीद थी क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व शिक्षामित्रों को छोड़कर सभी कर्मचारी व संविदा कर्मियों के बेतन भत्तों में 20 से 25% की बढ़ोत्तरी की गयी थी आज शिक्षामित्र बहुत दुखी है और अवसाद में जी रहे हैं और अल्प मानदेय में परिवार का भरण पोषण करना दूभर हो रहा है। विगत एक वर्ष से शिक्षामित्र लगातार अपनी मांगों को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे हैं और राजधानी लखनऊ में तीन बड़ी रैली भी कर चुके हैं। तीन सितंबर 2023 को प्रदेश के सभी 80 लोकसभा सांसदों के माध्यम से ज्ञापन सौंप कर अपनी मांग उठाई गई थी। उसके बाद कोर्ट के निर्देश पर कमेटी बनी तो शिक्षामित्रों के दिलों में उम्मीद की एक किरण जागी थी लेकिन आज शिक्षामित्र बहुत दुखी है और बिगत सात साल से शिक्षामित्रों के मानदेय में कोई बृद्धि नहीं की गयी है। इससे शिक्षामित्र अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं यही कारण है आर्थिक तंगी,मानसिक अवसाद के कारण ह्रदयघात तथा आत्महत्या कर अबतक दस हजार से अधिक शिक्षामित्र असमय ही प्राण त्याग चुके हैं और तनाब में आकर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं। अब चुनावी वर्ष में सरकार से उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन फिर एक बार मायूसी मिली है चुनाव के बाद जो कमेटी बनी है कमेटी की रिपोर्ट पर निर्णय लिया जाए और शिक्षामित्रों के भविष्य को सुरक्षित व संरक्षित किया जाए अन्यथा संगठन विवश होकर आंदोलन के लिए बाध्य होगा।