> सैकड़ों निर्माण कार्यों में सक्रिय है फर्जी फर्म।
सकरन(सीतापुर): इन दिनों ब्लॉक सकरन में विकास का कागजी प्रवाह जारी है। यहां डेवलपमेंट व विनिर्माण प्रक्रिया ने पूरी तरह से काल्पनिक रूप ले रखा है। विकास के इस काल्पनिक प्रवाह में जहां एक तरफ रातों- रात कागजी महल तैयार किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ लाखों के बजट वाले प्रोजेक्ट को भी मात्र चंद रोजों में कागजी स्वरूप प्रदान किया जा रहा है। क्षेत्र में चल रहे कागजी विकास के इस अनवरत प्रवाह में शामिल अधिकारियों को श्रमिक,कारीगर,इंजीनियर,फर्म आदि किसी भी प्रकार की सामग्री की जरूरत ही नहीं पड़ती। यहां के भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी विकास कार्यों में हिस्से बांट को लेकर इतने उतावले रहते हैं कि उन्हें किसी चीज की वास्तविकता से कुछ लेना देना ही नहीं होता। दरअसल यहां का आलम कुछ ऐसा है कि ब्लॉक में विकास कार्यों का टेंडर कब निकला,किधर निकला,किसे मिला इसकी किसी को कोई जानकारी ही नहीं। परिणामतः यहां अगर कहीं निर्माण कार्य चल भी रहा होता है तो इमारत पहले बन जाती है, उसके बाद निर्माण सामग्री का बिल निकलता है। विकास कार्यों में कल्पनीय कृत्य और हवा- हवाई संरचना की ठीक ऐसी ही एक फर्म ब्लॉक सकरन के भ्रष्ट अधिकारियों ने भी तैयार कर रखी है,जिसका वास्तविकता में कोई अस्तित्व ही नहीं है। एम/एस:बादल कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर्स फर्म,जिसके मालिक बादल मौर्या ने पूर्व में भी लाखों के घोटाले के साथ वर्तमान में भी क्षेत्र की विभिन्न ग्राम पंचायतों में ठेकेदारी के साथ मटेरियल सप्लाई भी कर रहे,जिसका न कोई खाता है न ही बही। काल्पनिक रूप से कागजों पर खोली गई यह फर्म इतनी विशालकाय है कि यहां ईंट,पत्थर,पेंट, फर्नीचर से लेकर ,सबकुछ मिल जाता है,जिसपर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों जैसे- बीडीओ व प्रधान आदि के हस्ताक्षर मुहर समेत दर्ज हैं। अब ऐसे में सवाल यह बनता है कि क्या बीडीओ साहब ने टैक्स इनवॉइस पर हस्ताक्षर करने से पहले इसकी वास्तविकता का परिक्षण किया? क्या एक ही फर्म विनिर्माण के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर सकती है? आखिर करोड़ो रुपए का हेर-फेर करने वाली इस फर्म के लिए जीएसटी भरना अनिवार्य क्यों नहीं ? अब देखना यह है कि लाखों की जीएसटी चोरी करने वाली फर्म पर भविष्य में कोई कार्यवाही होगी या मामला जैसा का तैसा बना रहेगा।