अब कितनी बदल गई है हमारी दिवाली

 

लेखक/सामाजिक कार्यकर्ता_पुनीत मिश्रा

जिंदगी में कुछ बदलाव अपने आप होते हैं, कुछ करने पड़ते हैं और कुछ की जरूरत हमेशा महसूस होती रहती है। दिवाली का बदला रूप यही दिखाता है। इस बार अगर खुद को प्रतिष्ठित कहलाने वालों के कमरों के बाहर गिफ्ट स्वीकार न करने का नोटिस लगा तो वह भी बदलाव का ही एक हिस्सा है। दिवाली अब दीपों का त्योहार नहीं बल्कि यह गिफ्ट के लेन-देन हैसियत का शोऑफ और इलेक्ट्रिक जगमगाहट और प्रदूषण युक्त पटाखों की आवाज और पल्यूशन का त्योहार बन गया है। दिवाली पर अब मिठाई के चंद टुकड़े और खील बताशों से सजी थाली पड़ोसियों को प्यार से सौंपने का त्योहार नहीं रह गया। दिवाली पर गिफ्ट के बाजार सजे हैं और पड़ोसियों व जानने वालों को कौन-सा गिफ्ट देना है, यही उधेड़बुन लगी रहती है। बिज़नेस वालों के लिए तो दिवाली संपर्क बनाने का एक बड़ा मौका है। कौन-किस हैसियत का है या उससे भविष्य में कौन-सा फायदा उठाया जा सकता है,दिमाग में यह बात ज्यादा घूमती है। आम आदमी सोचता है कि गिफ्ट के रिटर्न में कौन-सा गिफ्ट आया,ताकि आने वाले सालों में वैसा ही बर्ताव किया जाए। गिफ्ट पाकर हर कोई खुश होता है,चाहे छोटा हो या बड़ा। बस हर किसी के फायदा उठाने का मौका बन गया है दिवाली। दिवाली पर राजनीतिज्ञों और खासकर उन नेताओं की बन आती है जो किसी बड़े ओहदे पर बैठे हों। दिवाली ग्रीटिंग्स के नाम पर बड़े नेताओं के घर ड्राई फ्रूट्स,मिठाई और गिफ्ट का अंबार लग जाता है। समस्या यह पैदा हो जाती है कि आखिर इन्हें कहां संभालें। कुछ नेता तो कार्यकर्ताओं में बंटवा भी देते हैं, लेकिन ज्यादातर का गिफ्ट मोह उन्हें ऐसा करने से रोकता है। अब कुछ बदलने की हमें भी जरूरत है। पॉल्यूशन आज भारत ही नहीं,पूरे विश्व में अंधकार फैला रहा है। दिवाली पर हम बस आतिशबाजी फूंककर तमाशा देखते हैं। कोर्ट की फटकार या फैसला कोई बदलाव नहीं ला पाया,क्योंकि इसके लिए हमें दिल के फैसले की प्रतीक्षा है। उस फैसले का वक्त अब आ गया है। दिवाली मनाएं लेकिन पटाखों के बिना या कम से कम पटाखे जलाने के संकल्प के साथ मनाएं तो बदलाव एक सुखद तथा उजाले वाले भविष्य के आगमन का संदेश दे सकता है। शानदार और महान परम्पराओं का त्यौहार दीवाली का ऐतिहासिक स्वरुप ही बदल गया है। भौतिकवाद के इस युग में लोग अपनी स्वार्थ -सिद्धि और अनुचित हितों को साधने के लिये इस त्यौहार को एक सुअवसर के रुप में प्रयोग करते हैं। जिससे इस त्यौहार का महत्व और महत्ता ही समाप्त हो जाती है साथ ही दीवाली पर अरबों रुपये के छोडे़ जाने वाले वाले पटाखों से घर फूंक कर तमाशा ही देखते हैं और जो पर्यावरण प्रदूषित होता है वह दुखों और गम्भीर बीमारियों
को ही निमंत्रण देता है। अच्छा है प्रकाशोत्सव के इस उजाले में शुभम,सत्यम और सुंदरम के विचारोंं को ग्रहण करते हुये उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हों।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

नमस्कार,नैमिष टुडे न्यूज़पेपर में आपका स्वागत है,यहाँ आपको हमेसा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे 9415969423 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें
%d bloggers like this: