द कश्मीर फाइल्स: कश्मीरी हिंदुओं के लिया कानून का फंदा पड़ा छोटा

श्रीनगर : फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ प्रदर्शित होने के तीन दशक बाद कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन और हत्याओं की वीभत्स सच्चाई धीरे-धीरे बाहर निकल रही है। नौवें दशक के अंत में कुख्यात आतंकी बिट्टा कराटे कश्मीरी ङ्क्षहदुओं का चुन-चुन कर खून बहाता रहा। बिट्टा पकड़े जाने के बाद फिर बाहर आकर दोबारा आतंकी गतिविधियां में जुट जाता। अलबत्ता, मौजूदा समय में वह एक अन्य मामले में तिहाड़ जेल में बंद है।

22 जून, 1990 को जब उसे श्रीनगर में सीमा सुरक्षाबल के जवानों ने पकड़ा था तो उस समय तक वह लगभग डेढ़ दर्जन कश्मीरी हिंदुओं को मौत के घाट उतार चुका था। उसने ङ्क्षहदुओं समुदाय के उन नौजवानों को भी नहीं बख्शा था, जिनके साथ वह एक ही थाली में खाना खाता था। वर्ष 2006 में जेल से रिहा होने से पूर्व उसे कभी अपने किए पर अफसोस नहीं हुआ। राजकीय मेडिकल कालेज अस्पताल जम्मू में 1997 की गर्मियों में जब उसे स्वास्थ्य जांच के लिए लाया गया था तो उसने यह जरूर कहा था कि जो लोग कश्मीर की आजादी के नाम पर घर भर रहे हैं, उनका भी हिसाब होगा।

तिहाड़ जेल में ही बंद जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कमांडर रहे यासीन मलिक के बंदूक छोडऩे का एलान करने पर ही बिट्टा कराटे के मतभेद शुरू हुए थे। वह हिंदुओं के कत्ल को शौक मानता था। जेल से रिहा होने से पूर्व उसने खुद कई बार मीडियाकर्मियों से बातचीत में गुनाहों को यूं कुबूला, जैसे वह किसी खेल का हिस्सा हों। उसे खुद भी याद नहीं है कि उसने कितनी हत्याएं की हैं। वह सिर्फ यही कहता था कि मुझे सिर्फ हुक्म आता था और मैं उसे पूरा करता था।

जम्मू कश्मीर लिबरेशल फ्रंट (जेकेएलएफ) के दुर्दांत आतंकियों में शामिल रहे पूर्व आतंकी कमांडर ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि उस समय जहां अन्य आतंकी सुरक्षाबलों पर हमला कर भागने की रणनीति पर काम करते थे, तो बिट्टा शूटर की तरह सिर्फ चुनिंदा हत्याओं के लिए निकलता था। वह किसी को भी आराम से गोली मार सकता था। फारूक अहमद उर्फ बिट्टा के नाम से ही लोग डर जाते थे।

गुलाम कश्मीर से लेकर अमेरिका व इंग्लैंड में जुड़े थे तार : वर्ष 2006 में जेल से रिहा होने के बाद वह जेकेएलएफ के यासीन मलिक गुट में जाने के बजाय राजबाग गुट जिसके तार गुलाम कश्मीर में अमानुल्ला खान और अमेरिका व इंग्लैंड में बैठे पुराने अलगाववादियों से जुड़े थे, में शामिल हुआ। वर्ष 2008 में वह महिला पत्रकार अस्बाह अर्जुमंद के संपर्क में आया जो उस समय कश्मीर में मानवाधिकारों के मुद्दे पर किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। इससे पूर्व दोनों एक परिचित की शादी में मिले थे। वर्ष 2011 में अस्बाह अर्जुमंद से फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे ने शादी की। बिट्टा की पत्नी जम्मू-कश्मीर सरकार में वरिष्ठ नौकरशाह है।

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