दवा नहीं मौत बांट रहे मेडी लाइफ हॉस्पिटल के डॉक्टर

दवा नहीं मौत बांट रहे मेडी लाइफ हॉस्पिटल के डॉक्टर

लुटेरों की फर्स्ट श्रेणी में आता है मेडी लाइफ हॉस्पिटल डीसी रोड लखीमपुर

मेडी लाइफ हॉस्पिटल की एटीएम मशीन है निर्धन जनता

साक्ष्य में पीड़ित मरीज का वीडियो वर्जन उपलब्ध व जांच रिपोर्ट भी

 

लखीमपुर खीरी/ लुटेरों की फर्स्ट श्रेणी में आता है मेडी लाइफ हॉस्पिटल डीसी रोड *लखीमपुर खीरी वहां तो खून चूसने और निकालने के लिए टेस्टिंग के नाम पर एडवांस हर वक्त दानव बैठे रहते हैं।* अभी एक ताजा मामला आया था जिसमें बी.यू.एम.एस. डिग्री धारक जो मेरे अनुमान से झोलाछाप डॉक्टर के अनुभव से परे है ने बताया गया था कि मरीज के बॉडी के सारे पार्ट डैमेज हो गए हैं और *24 घंटे में 30 हजार रुपए चूस कर 99% मरीज को मौत के घाट में उतारते हुए रेफर कर दिया था जब लखनऊ ले जाया गया* तो वहां सच्चाई कुछ और थी जांच करने पर बॉडी के सारे पार्ट नॉर्मल निकले सिर्फ बुखार की वजह से प्रॉब्लम आई थी आज मरीज बिल्कुल स्वस्थ है मेडी लाइफ हॉस्पिटल के डॉक्टर द्वारा कराई गई सभी जांचे मौजूद है‌। *अब मेडी लाइफ अस्पताल की करतूतो को उजागर करते* हुए आपको बताना चाहते हैं कि मेडी लाइफ हॉस्पिटल की खास बात यह है कि नामी ग्रामी डॉक्टरो के बोर्ड लगा करके भोली भाली गरीब एवं मरीज जनता को दिखावा करके उन्हें भ्रमित करने का कार्य किया जा रहा है और अपनी तरफ आकर्षित करने एवं लुभावने का काम बड़ी जोरों शोरो के साथ चल रहा है। जिसके लिए फील्ड ऑफिसर क्षेत्र में घूम कर कमीशन के लालच की आड़ में मरीजो को पटाने का कार्य कर रहे है जो आंखों में धूल झोंकने के बराबर मात्र सिद्ध होता नजर आ रहा है। मेडी लाइफ हॉस्पिटल की दूसरी विशेषता यह भी है। कि यदि अस्पताल के अंदर किसी मरीज को छींक भी आ जाती है तो वहां पर बैठे अनभिज्ञ एवं अनुभवहीन जान लेवा रूपी डॉक्टर खून निकाल कर कमीशन के लालच में टेस्टिंग कराना शुरू कर देते हैं नाम न छापने की शर्त के हवाले से बताया गया कि इनका कमिशन 60% डॉक्टर के नाम से बन्द लिफाफों में गुलाबी नोटों का पहुंचना शुरू हो जाता हैं। उसके बाद 99% जरनिक दवाइयां जो मार्केट में आसानी से 5 रुपए की मिल जाती है और उस पर एम.आर.पी. 500 रुपए पड़ी होती है वह दवाई गरीब बेसहारा मजदूर मरीज के जिस्म में खापाना शुरू कर दिया है। अनुभवहीन रुपी डॉक्टर 24 या 36 घंटे मरीज को रोकने के बाद उनका बिल जब 30 से 40 हजार हो जाता है। तब वह अपना पेट भरा समझते हुए मरीज को 99% मौत के घाट में उतारते हुए रेफर कर दिया जाता है। उक्त प्रकरण में इसी अस्पताल के अंदर एक मोहम्मद आरिफ नाम के व्यक्ति की संपूर्ण सहभागिता रहती है इसी व्यक्ति के सहारे मेडी लाइफ हॉस्पिटल अपनी धुरी पर घूम रहा है जिसकी डिग्री का कोई पता जता नहीं है ना तो किसी बोर्ड पर इसका नाम अंकित है और ना ही ओ.पी.डी. कक्ष में, फिर भी नामी ग्रामी डॉक्टरो की कुर्सी पर बैठकर मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है इसके अतिरिक्त यह डॉक्टर गरीब मजलूम के नुचे फटे बटुए के ऊपर डाका डालने का कार्य कर रहा है। यह डॉक्टर नहीं डाकू है। यदि इसकी खरीदी हुई डिग्री है भी तो यह अपने तय सीमा के बाहर कार्य करता हुआ नजर आ रहा है और अच्छे डॉक्टरो के नाम को बदनाम करते हुए उनकी छवि को धूमिल करके मरीजों की जान को जोखिम में डालकर अपनी प्रेक्टिस को पूरा कर रहा है। ऐसी स्थिति में अब मेडी लाइफ हॉस्पिटल के मैनेजमेंट पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो रहा है कि ऐसे अनभिज्ञ और अनुभवहीन डॉक्टर से इलाज करवा के मरीजों की जिंदगी के साथ क्यों खिलवाड़ करा रहे हैं। यदि यही स्थिति बनी रही तो गरीब जनता को इसका खामियाजा जल्द से जल्द भुगतना पड़ेगा। अंततः यदि जरनिक दवाइयों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में जनता को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। संदेह के आधार पर हॉस्पिटल के रजिस्ट्रेशन की जांच होनी चाहिए‌। जो अति शीघ्र जांच का विषय है। अब देखना यह होगा कि लखीमपुर खीरी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी क्या कार्रवाई करते हैं।

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