ताला लगा दिया कोठों में तवायफों ने इतना कहकर कि अब इज़्ज़त की नीलामी घरों में आन लाईन हो जाती है

दिलीप त्रिपाठी संपादक

नैमिष टुडे
ताला लगा दिया कोठों में तवायफों ने इतना कहकर कि
अब इज़्ज़त की नीलामी घरों में आन लाईन हो जाती है
उपरोक्त चन्द अल्फाज़ आधुनिक समाज की सच्चाई को उजागर कर दिया है! सच के धरातल पर पड़ताल की परिपक्वता को नकार नहीं जा सकता! कभी शहरों के एक खास इलाके में कुछ ऐसा होता था जहां हर आदमी जाना गवारा नहीं करता! मगर बदलते दौर में साहब आहत मन से सच को स्वीकारते हुए इस वर्तमान परिवेश के लिए सन्देश के रूप में यह कुछ बहकी बहकी लाईनें लिखनी पड रही है!देश में महिला सशक्तिकरण से लेकर संसद में आरक्षण का सवाल बवाल बनकर जागरूकता का पथ प्रदर्शन कर रहा है।हर तरफ शोर है देश बदल रहा है! नाम बदल रहा है! काम बदल रहा है! आधुनिकता के आवरण में सब कुछ बदल रहा है,! शर्म हया लज्जा दरवज्जा की दहलीज से नंगे पांव बाहर निकल चुकी है! निर्लज्जता की पराकाष्ठा अन्तिम मुकाम पर मुस्करा रही है।कभी जिसे इज्जत की देवी कहा जाता था आज वही देवी सर्वत्र अपनी पवित्र छबि में दाग लगा रही है! खान पान पहनावा सब दिखावा हो गया!बड़े छोटे का लिहाज खत्म हो गया!शर्म हया कल की बात हो गई!सम्पूर्ण मानव समाज इसकी चपेट में है! शिक्षा दीक्षा परीक्षा के बाद जो समीक्षा हो रही है उसको आधुनिक जमाने का फैसन कहा जा रहा है!अंग्रेजी का शब्द रिलेशन सीप आजकल चर्चित है!हालांकि मानव समाज इससे पहले से परिचित है! फर्क इतना है इसको समझदार समझते हैं! रखैल शब्द को हकदार समझते थे। तिरस्कार उपहार में मिल‌ जाता था! जैसे जैसे समाज सम्वृध हुआ वैसे वैसे आज की युवा पीढ़ी निषिद्ध कार्यों के लिए प्रसिद्ध हुई है! कोई भी ऐसा दिन नहीं होगा जिस दिन अखबार के मुख्य पेज पर जिस्म फरोशी की खबरें प्रकाशित नहीं होती है! पकड़ी जाने वाली लड़कियां कालेज, यूनिवर्सिटी, बिद्यालय की लगभग होती है।ब्वाय फ्रेंड का चलन बदचलन बनाने का पुख्ता फार्मूला बन गया है!शिक्षा संस्थान जो कभी शिक्षा मन्दिर‌ कहे जाते थे आज के बदलते परिवेश में तिजारत का अड्डा बन गये!इन शिक्षा संस्थानों से जिस्म फरोशी का कारोबार पर फूल रहा है‌!शहर कि बात छोड़िए जनाब अब तो बाजार कस्बा भी गुलजार हो गये!तमाम होटल इसी धन्धे से माला माल हो गये! मोबाईल का जमाना है हर कोई इसी दीवाना है!और यही जिस्म फरोशी का कारखाना है‌!सबसे आश्चर्य तो तब होता है जब घर से बाहर घर की आबरु समय गुजर जाने के बाद भी वापस नहीं होती!अपनो से नहीं होती रूबरु !फिर भी शिकायत नहीं! फैसन के नाम पर मौज मस्ती का खेल एक नहीं कई कई की बनकर रखैल सरेयाम घर की इज्जत कर रही है नीलाम फिर भी कोई टेन्सन नहीं!क्यों की जमाना बदल गया अब पहले वाला चलन नहीं!अब तो लोग पूछना भी गवारा नहीं समझते! इतने महंगे कपड़े कहां से खरीदते!ज़बाब भी मिल जाता ब्वाय फ्रेंड ने गिफ्ट दिया है! लोग सहर्ष स्वीकार कर सारा अधिकार सौंप देते हैं!गजब का परिवर्तन है साहब पुरातन संस्कार का तिरस्कार, बदलता आचार बिचार,और उस पर भी तूर्रा यह की सरकार भी बढाती जा रही सारा अधिकार!घर की दहलीज से तमीज गायब हो गयीअदालतों मे तलाक के मुकदमों की भरमार है!मैकाले की सोच से निकली शिक्षा ने संस्कार का तिरस्कार करा दिया!आधुनिकता के नाम पर भारतीय परम्परा का विनाश करा दिया!हम कहां जा रहे हैं खुद पता नहीं! पीछे मुड़कर किसी ने देखा नहीं।हम सुधरेंगे जग सुधरेगा!यह बात अब तर्क संगत नहीं लगती।साहब अकेला चना भाड नहीं फोड़ता! यह हम नहीं आज के कुंठित मानसिकता के वे लोग कह रहे है जो इस विकृत समाज के आगे घुटने टेक दिए है‌!जिस तरह का समाज बन रहा है वह आने वाले कल के लिए बेहद अफसोस जनक और‌ भारतीय संस्कृतियों का पोस्टमार्टम करने वाला होगा! नंगापना, फूहड़ पना बेशर्मी, बेहयाई,बदचलनी, बदजुबानी, बदतमीजी, बदमिजाजी, बदनामी का चलन होगा! यही आधुनिक समाज का मापदंड होगा यही पैरहन होगा।-हर रोज विवाह हर रोज बिछडन होगा!——-??
रामचन्द्र कह गये सिया से एक दिन कलयुग आयेगा। हंस चुगेगा दाना पानी कौआ मोती खायेगा!
अब सब सामने दिखने लगा।जो निश्चित है होकर रहेगा फिर भी राह के कांटे से बचकर चलना ही बुद्धिमानी है। मंजिल मिले न मिले कोई ग़म नहीं! लेकिन कोशिश भी न करें यह ग़लत बात है।

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