तालिबान ने भारत में नए राजदूत को नियुक्त करने के लिए वर्तमान राजदूत पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया

तालिबान ने भारत में नए राजदूत को नियुक्त करने के लिए वर्तमान राजदूत पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया

 

नई दिल्ली : अफगानिस्‍तान में तालिबान शासन को एक साल से अधिक समय हो गया है, अभी तक उसे अंतरराष्ट्रिय मान्‍यता नहीं मिल पाई है। इस बीच तालिबान की ओर से कई देशों में पूर्व राष्‍ट्रपति अशरफ गनी के तैनात किए हुए राजदूतों की जगह पर अपने राजनयिकों को तैनात कर दिया है। भारत में भी इसके लिए प्रयास जारी थे।

प्राप्त खबर के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने भारत से अपने राजदूत फ़रीद मामुन्दज़ई को वापस बुलाने का फ़ैसला किया है और वर्तमान ट्रेड काउंसलर क़ादिर शाह को भारत का कार्यकारी राजदूत बनाया है।

दरअसल, राजदूत को लेकर ये मौजूदा विवाद उस वक्त शुरू हुआ, जब तालिबान के विदेश मंत्रालय ने एक पत्र जारी कर भारत स्थित अपने दूतावास पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लगाए हैं। तालिबान के विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली स्थित अपने दूतावास पर एक भारतीय कंपनी को लीज़ पर ज़मीन के मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। तालिबान के विदेश मंत्रालय के इस पत्र को अफ़ग़ानिस्तान के टोलो न्यूज़ ने पोस्ट किया था।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, फ़रीद मामुन्दज़ई ने जवाब में एक पत्र जारी कर कहा है कि भ्रष्टाचार के आरोप एकतरफ़ा, पक्षपाती और झूठ हैं। फ़रीद ने अपने पत्र में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और अफ़ग़ानिस्तान के नागरिक देश के बाहर भी मुश्किलें झेल रहे हैं। फ़रीद मामुन्दज़ई 2020 से ही भारत में अफ़ग़ानिस्तान के राजदूत हैं।

ख़बर है कि पिछले महीने ही तालिबान के विदेश मंत्रालय ने फ़रीद मामुन्दज़ई को वापस काबुल बुलाया था। पिछले महीने 25 अप्रैल को तालिबान के विदेश मंत्रालय ने फ़रीद को पत्र भेजकर वापस काबुल आने के लिए कहा था।

उसी दिन तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी ने कहा था कि ट्रेड काउंसलर क़ादिर शाह दिल्ली स्थित अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास को देखेंगे। तालिबान ने यही काम अप्रैल 2022 में चीन में किया था। तब तालिबान ने बीजिंग स्थित अपने दूतावास से तत्कालीन राजदूत को वापस बुला लिया था।

द हिन्दू ने क़ादिर शाह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह किसी सियासी पार्टी या समूह से कोई ताल्लुक नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान के विदेश मंत्रालय ने उन्हें दिल्ली स्थित अफ़ग़ानिस्तान दूतावास में भ्रष्टाचार के मामलों को देखने की ज़िम्मेदारी दी है। क़ादिर शाह ने कहा कि फ़रीद की नियुक्त तालिबान के आने से पहले हुई थी।

खबरों के अनुसार तालिबानी नेता कादिर शाह वर्तमान में अफगानिस्तान में ट्रेड काउंसलर हैं और भारत में उनकी डी’ अफेयर्स (कार्यकारी राजदूत) के रूप में नियुक्त करने के फैसले को अफगानिस्तान की स्थिति और उसकी भारत सरकार के साथ इंगेजमेंट को लेकर, भारत के लिए एक कठिन फैसला है।

वहीं, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख और संयुक्त राष्ट्र में नामित राजदूत सुहैल शाहीन ने भारत में अफगान राजदूत को बदलने की पुष्टि की है। उन्होंने टीओआई के बताया, कि यह एक तर्कसंगत कदम है। शाहीन ने कहा, कि “यह विश्वास बनाएगा और भारत के साथ बेहतर संबंधों का मार्ग प्रशस्त करेगा।”

विदित हो कि भारत सरकार ने काबुल में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है, भले ही पिछले साल जून में काबुल में भारत ने अपना दूतावास फिर से खोल दिया है, लेकिन तालिबानी दूत को दिल्ली में काम संभालने को मंजूरी देना एक कठिन फैसला है। हालांकि, भारत सरकार इसे अफगानिस्तान के आंतरिक मामले के तौर पर देखती है।

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि तालिबान सरकार ने अपने इस फैसले को आधिकारिक तौर पर भारत सरकार के साथ साझा किया है या नहीं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, फिलहाल नई दिल्ली में अफगान दूतावास अभी भी राजदूत फरीद मामुंडज़े ही चला रहे हैं, जिन्हें अशरफ गनी की सरकार ने नियुक्त किया था, जो अगस्त 2021 में तालिबान के हमले के कारण ढह गई थी। हालांकि, तब से दूतावास की स्थिति स्पष्ट नहीं रही है और तालिबान ने कई बार अपने राजदूत को बदलने की कोशिश की है, ताकि अपने आदमी को नई दिल्ली में नियुक्त कर सके।

उधर अफगान मीडिया में भ्रष्टाचार के रिपोर्ट आने के बाद रविवार को, मौजूदा राजदूत मामुंडज़े ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, कि दूतावास एकमात्र ‘पता’ है जो अफगान नागरिकों की समस्याओं से “जितना संभव हो” निपटाता है। इसके साथ ही उन्होंने अफवाह फैलाने के लिए अफगानिस्तान की मीडिया को फटकार लगाई।

मामुंडजे ने अफगानों को आश्वासन दिया है, कि दूतावास अभी भी उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ काम कर रहा है।

बता दें कि भारत, बाकी अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरह, काबुल में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है, लेकिन अतीत की आपसी दुश्मनी को भी ‘अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात’ के साथ सहयोग के रास्ते में नहीं आने देता है।

भारत ने पिछले 18 महीनों में अफगानिस्तान को राहत सहायता कई बार भेजी है, जिसमें 50 हजार टन गेहूं भी शामिल है। वहीं, तालिबान ने बार बार भारत से संबंध मजबूत करने की अपील की है और भारत को आश्वासन दिया है, कि वो अपनी धरती को भारत के खिलाफ आतंकी हरकतों के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा।

ज्ञात हो कि अफगानिस्तान, जिसकी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो चुकी है, वो लगातार भारत से मदद के इंतजार में रहता है और इसीलिए वो नई दिल्ली में अपने राजदूत की नियुक्ति चाहता है, ताकि उसके शासन की नाकामयाबियां भारत तक नहीं पहुंच पाए।

हालांकि, भारत अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों की गतिविधियों के बारे में अभी भी चिंतित है और बहुपक्षीय मंचों से बार-बार इस मुद्दे को हल करने की आवश्यकता को रेखांकित करता रहा है। वहीं, भारत ने अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार की स्थापना की मांग की है, जिसमें सभी धर्म, पंथ और महिलाओं की भागीदारी हो।

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