क्या भारत के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास धन की कमी है?

क्या भारत के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास धन की कमी है?

CPR के इस पेपर में पाया गया है कि अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के पास अधिशेष धन है; सरकारों से उन्हे बहुत कम या कोई पैसा नहीं मिलता है।

लखनऊ पिछले साल, सीपीआर द्वारा ‘द स्टेट ऑफ इंडियाज़ पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड्स’ शीर्षक वाले पेपर की एक श्रृंखला में पाया गया कि गंगा के मैदानी इलाके, जो दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है, उनके प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) मे कर्मचारियों की बहुत कमी है और निर्दिष्ट कार्य करने की क्षमता कम है। एसपीसीबी के वित्त पर पहले से मौजूद साक्ष्य (रिपोर्ट या साहित्य) से दो विरोधाभासी कथनों का पता चलता है (ए) उनके पास पर्याप्त धन की कमी है, या (बी) उनके पास जो मौजूद धन है उसे खर्च करने में वे अप्रभावी हैं। यद्यपि हमारे पास दोनों कथनों का समर्थन करने के लिए सबूत हैं, आज तक किसी भी अध्ययन ने इस बात को गहराई से नहीं खोजा है कि एसपीसीबी कैसे धन जुटाते हैं, वे क्या खर्च करते हैं, और वे इन निधियों पर कैसे खर्च करते हैं, जिससे उनके वित्तीय स्वास्थ्य पर एक सूचित एवं समग्र राय विकसित करने में मदद मिल सकती है।

इस श्रृंखला में हमारा नवीनतम पेपर 10 राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के राजस्व, व्यय, निवेश और वित्तीय स्वायत्तता का गहन अध्ययन है: इसमे बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल है। हमने 3 वित्तीय वर्षों (2018-19, 2019-20 और 2020-21) में इन एसपीसीबी का वित्त विश्लेषण किया और पाया:
अधिकांश बोर्डों मे हर साल अधिशेष (सरप्लस) धन होता है: अधिकांश बोर्डों के पास हर साल अधिशेष धन था। साथ ही कई बोर्ड फीस और अन्य स्रोतों के माध्यम से एकत्रित राशि को पूरी तरह खर्च करने में परेशानी होती है। सभी तीन वर्षों में माध्य निधि (median fund) उपयोग दर (व्यय/राजस्व) 48% था.

अधिशेष धन आधारभूत साधन जैसे प्रयोगशाला, नई तकनीक और अमला (जन-बल) बढ़ाने के बजाय फिक्स्ड डिपॉजिट में जाता है: SPCBs/PCCs द्वारा हर साल जेनरेट होने वाला अधिशेष धन मैनपावर, इंफ्रास्ट्रक्चर और इक्विपमेंट बढ़ाने के बजाय शॉर्ट टर्म फिक्स्ड डिपॉजिट में जाता है। कुल मिलाकर, हमारा अनुमान है कि 31 मार्च 2021 तक 10 एसपीसीबी/पीसीसी द्वारा सावधि जमा में 2893 करोड़ रुपये का निवेश किया गया था। ब्याज से अर्जित आय पर यह निर्भरता एसपीसीबी की दैनिक (रूटीन) व्यय के अलावा किसी भी चीज़ के लिए धन आवंटित करने की क्षमता को बाधित करती है।

बुनियादी ढांचे और अनुसंधान पर खर्च कम है: कर्मचारियों के लिए वेतन और भत्ते एसपीसीबी/पीसीसी व्यय के आधे से अधिक होते हैं, जिसमे से कुछ 80% से अधिक है। कई राज्यों में बुनियादी ढांचे की कमी और अपर्याप्त सुविधा के बावजूद, कई प्रयोगशाला सुविधाओं सहित नए बुनियादी ढांचे पर खर्च कम (11%) है। अनुसंधान, विकास और अध्ययन पर खर्च कुल व्यय का एक छोटा अंश (2%) होता है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को सरकार से वित्तीय सहायता नहीं मिलती: दो राज्य को छोड़कर सभी मामलों में, राज्य सरकारों द्वारा उनके संबंधित एसपीसीबी/पीसीसी को वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की गई। केंद्र सरकार का वित्त पोषण विरल (अपर्याप्त) है, और मौजूदा केंद्र प्रायोजित योजनाओं से जुड़ा हुआ है। बोर्ड सहमति शुल्क और सावधि जमा से प्राप्त ब्याज से राजस्व प्राप्त करना चाहते हैं, जो उनके राजस्व का लगभग 76% है.

वित्त पर बोर्ड के सदस्यों का जुड़ाव अपर्याप्त है: एसपीसीबी के वित्तीय कामकाज को मजबूत करने हेतु वित्तीय मामलों पर बोर्ड के सदस्यों से अधिक जुड़ाव की आवश्यकता होगी। हालाँकि, जैसा कि हमने इस श्रृंखला के पहले पेपर से देखा, बोर्ड की बैठकों में वित्त जैसे मूल मुद्दों पर न्यूनतम ध्यान दिया जाता है।
हमारे निष्कर्ष आरटीआई आवेदनों से प्राप्त जानकारी, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध द्वितीयक डेटा एवं  साहित्य की समीक्षा, और सीपीसीबी एवं एसपीसीबी/पीसीसी के 20 वर्तमान एवं पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों (नेतृत्व करने वाले) सहित उनके कर्मचारियों के साक्षात्कार पर आधारित हैं।

“वायु गुणवत्ता में निरंतर सुधार प्राप्त करना हमारे एसपीसीबी के सर्वोत्तम कार्य करने पर निर्भर है, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि वे आर्थिक रूप से मजबूत न हों। हमारे शोध से जानकारी हुयी है कि राज्य सरकारों से नियमित, मुक्त वित्तीय सहायता के अभाव में, एसपीसीबी शुल्क और ब्याज से अर्जित आय पर अत्यधिक निर्भर हैं। यह एक एकतरफा प्रोत्साहन संरचना को बढ़ावा देता है जो उन्हें भारत की वायु गुणवत्ता में सुधार की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक वित्तीय और कार्यात्मक स्वायत्तता से वंचित करता है” – भार्गव कृष्णा,

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