अजूबा: कैमरे में देख कर गम्भीर मरीज भर्ती करता है जौनपुर का एक चिकित्सक

मेडिकल स्कैम 4

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अजूबा: कैमरे में देख कर गम्भीर मरीज भर्ती करता है जौनपुर का एक चिकित्सक

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– इस चिकित्सक की नज़र मरीज के परिजनों की जेब को करती है स्कैन, इसका कार चालक ही है चिकित्सकीय असिस्टेंट, स्टोर रूम और वाहन स्टैंड में है मेडिकल स्टोर, कथित नर्सें आईसीयू में खेलती हैं लूडो व कैरम.

– दवा कम्पनियों के प्रतिनिधियों की होती है दामाद की तरह पूजा, बीते महीने एक मरीज से हर दिन वसूला गया सात हजार आईसीयू का शुल्क प्रति दिन, तीन दिन में मरीज मर गया तो एक लाख बिल भुगतान के बाद दी गई लाश.

– यहाँ एमारपी से अधिक कीमत पर दी जाती है दवा, मरीज की पिटाई और परिजन को माना जाता है श्वाँन, मरीज की केस हिस्ट्री रखी जाती है जब्त, मेडिसिन स्कैम का प्रमुख अड्डा बना यह कथित अस्पताल और सरदार है यहाँ का डॉक्टर.

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कैलाश सिंह

वाराणसी. स्टोरी के साथ सनलग्न तस्वीर नई गंज जौनपुर के उस अस्पताल की है जो जनपद में स्लाटर हाउस के नाम से प्रचलित हो गया है. यह सिटी के पुराने हाईवे पर पोलिटेकनिक चौराहे से लगभग 150 मीटर दूर नई गंज मोड़ पर स्थित है. हैरत इस बात की है की मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में सख्ती के बावजूद जिले के डीएम और सी एम ओ की नजर नहीं पड़ रही जबकि सरकारी अस्पताल के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक हाल ही में बर्खास्त किए गए लेकिन निजी अस्पतालों पर मानक तक की जांच नहीं की जा रही. इनमे फायर ब्रिगेड की एन ओ सी कैसे मिलती है यह जग जाहिर है. इससे साबित होता है की योगी सरकार में गुंडा टैक्स तो बन्द हो गया लेकिन अफसरों की हफ्ता वसूली बदस्तूर है.

इस कथित स्लाटर हाउस में दवा के एम आर पी से मरीज के परिजन पहले घण्टे में हलाल होते हैं. इस कूड़ा घर में मेडिकल स्टोर वाहन स्टैंड में बना है. तैनात स्टॉफ को शायद बताया गया है की एम आर पी रेट के बाद जो वसूली करोगे वह् तुम्हारी कमाई मानी जाएगी. मरीज के दुखी व घबराए परिजन आम तौर पर दवा बिल का मिलान नहीं करते. बस तुम्हे ज्यादा कमाई से दवा प्रतिनिधियों की सेवा में कुछ खर्च करने होंगे. यहाँ कुछ परिजन दवा बिल में गड़बड़ी को लेकर आए दिन झगड़ते हैं. उनके ईलाज के लिए आईसीयू तक से लठैत पहुँच जाते हैं. लखनऊ- वाराणसी रोड के मोड़ के पास इस चार मन्जिले मुर्गी पालन केंद्र में वाहन सड़क पर ही खड़े होते हैं. प्राइवेट रूम का हर दिन का शुल्क है दो हजार -2200 है लेकिन परिजन को रोज 50 रुपये देकर सफाई करानी पड़ती है. कहने पर बगैर ड्रेस वाले कथित स्टॉफ का जवाब होता है की रहेंगे आप और सफाई अस्पताल क्यों करेगा? दवाओं की जांच करने वाले अफसर केवल उन मेडिकल स्टोर पर पहुँचते हैं जहां आमजन को 20 परसेंट की खुली छूट मिलती है. जाहिर है उन्हें हफ्ता बढ़ाने को कहा जाता है.

मरीज जब आईसीयू के आधा दर्जन से अधिक बेड वाले कमरे में पहुंचा दिया जाता है तब परिजन लाचार नज़र आता है. हजारों की दवा और बेड चार्ज व अन्य खर्चे का लम्बा चौडा बिल तुरन्त जमा कराया जाता है. कोई हैरत नहीं की यहाँ मुर्दो का भी इलाज हो रहा हो. अक्षय कुमार की फिल्म में हीरो ने लाश का इलाज एक अस्पताल में तीन दिनकराया और सवा तीन लाख के बदले 20 लाख वसूली करके डॉक्टर को नंगा भी किया. उसी तर्ज़ पर वाराणसी के एक अस्पताल में बीएचयू से डेथ सर्टिफिकेट लेकर एक व्यक्ति ने लाखों वसूली के बाद अस्पताल प्रबन्धन को मीडिया व पुलिस के सामने नंगा करके सील करा दिया. यह प्रकरण कोरोना काल का है. दिलचस्प ये की वह जगलर भी जौनपुर का मूल निवासी है. बाद में पैसे के बल पर उसने सील तुड़वा ली. अब उसका जुड़वा भाई ( काल्पनिक उदाहरण असल भाई नहीं ) यहाँ पर धंधा शुरू कर चुका है. इसी डकैती के चलते आईएमए से जुड़े लोग भी इससे दूरी बनाए रहते हैं. कुछ चिकित्सक पीठ पीछे गाली भी देते हैं.

इसी कथित कसाई के सामने और अगल बगल तमाम न्यूरो के डॉक्टरों की लोग तारीफ भी करते हैं. उनके व्यवहार से मरीज की आधी बीमारी दूर होती महसूस होती है. बाकी यदि अस्पताल के मानक और बेहतरीन इलाज के लिए मशहूर हो रहा मेदांता की तर्ज़ पर निर्माणाधीन अस्पताल देखना हो तो शहर से सटे गाँव कन्धर् पुर जाना होगा. यहाँ भीतर जाते ही महसूस होगा की मुंबई में हैं. डॉ विवेक श्रीवास्तव व नितिन सिंह की युवा जोड़ी कुछ बड़ा व बेहतर करने का ज़ज़्बा लिए ट्रेंड स्टॉफ के साथ मिलेगी. अन्यथा ट्रामा सेंटर के नाम पर धोख का हब नई गंज इलाका तो बन ही रहा है. क्रमशः

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