बंद मुट्ठी लाख़ की खुल गई तो ख़ाक की 

बंद मुट्ठी लाख़ की खुल गई तो ख़ाक की

 

पारिवारिक, सामाजिक, व्यवसायिक, राजनीतिक सहित अनेक क्षेत्रों के संबंध में बंद मुट्ठी लाख़ की खुल गई तो ख़ाक की कहावत सटीक

 

भारतीय संस्कृति में बड़े बुजुर्गों की कहावतों की व्यवहारिक सटीकता, हमारे दैनिक जीवन में प्रमाणित होती है – एड किशन भावनानी

 

गोंदिया – वैश्विक सृष्टि की रचना जब अलौकिक शक्तियों से अलंकृत शक्ति ने की होगी तो, उसके अंश भारत पर विशेष कृपा, रहमत बरसाई होगी!! और अद्भुत संस्कारों, सभ्यता, मान सम्मान से ऐसी कौशलताओं की महक कर कृपादृष्टि बरसाई होगी कि भारत माता की मिट्टी में अद्भुत गुण समाहित हो गए और यहां जन्म लेने वाले हर जीव की देह में समाहित होकर बौद्धिक कौशलता से उपयुक्त गुणों की ज्योति पीढ़ी दर पीढ़ी जगाते रहते हैं जो, पीढ़ियों से हमारे बड़े बुजुर्गों को मिली और उसी वैचारिकता का हम लाभ उठा रहे हैं।

साथियों आज हम उन वैचारिकताओं के एक अंश, बड़े बुजुर्गों की कहावतों पर चर्चा करेंगे। वैसे तो कहावतें बहुत हैं जैसे दाने-दाने को मोहताज, ढाक के तीन पात, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला, घर का भेदी लंका ढाए, बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो फिर खाक की सहित हजारों कहावतें हमें मिलेगी पर आज हम चर्चा इस उपरोक्त कहावत पर करेंगे।

साथियों बात अगर हम इस कहावत की करें तो हमें पारिवारिक,सामाजिक,व्यसायिक औद्योगिक, राजनीतिक सहित अनेक क्षेत्रों के संदर्भ में यह कहावत सटीक फिट होते हमारे व्यवहारिक जीवन में या या अन्यों के ऊपर लागू होते हम देखते रहते हैं मेरा मानना है कि उपरोक्त हर क्षेत्र में उनकी इस कहावत से उनकी अंदरूनी ताकत या बड़ी कमजोरियां निश्चित रूप से छिप जाती होगी, जिसे सार्वजनिक करना उनके लिए अति हानिकारक हो सकता है!! क्योंकि हर क्षेत्र की अपनी अपनी रणनीतियां होती है, कुछ सीक्रेट से होते हैं, जिन्हें सार्वजनिक करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होता है क्योंकि वह उनके लिए प्रतिष्ठा, साख, ताकत, रोब का काम करते हैं!! हमारी मुट्ठी अगर बंद रहेगी तो हमारे सिवा किसी को यह कमजोरी पता नहीं चलेगी , कि उसमें क्या है!!

साथियों बात अगर हम आधुनिक परिपेक्ष में पारदर्शिता की करें तो यह इस कहावत की विरोधाभासी है! फिर भी इसे अपवाद के रूप में छूट है! क्योंकि वैश्विक स्तरपर रक्षा सहित उपरोक्त क्षेत्रों में अनेकों ऐसी बातें पारदर्शिता के दायरे से मुक्ति पाने की हकदार है इसलिए ही कानून विशेषज्ञ या जानकारों को मालूम होगा कि कानूनों में प्रोवीसो, बशर्ते, सिवाएं, अपवाद, छूट, लागू नहीं जैसे अनेकों शब्दों के बल पर कानूनी रूप से भी करीब-करीब सभी कानूनों में भी छूट रहती है ? साथियों बात अगर हम, खुल गई तो फ़िर ख़ाक की, इसपर करें तो हम उसे उनकी हकीकत सामने आने के परिपेक्ष में देखते हैं, जो उपरोक्त हर क्षेत्र के लिए लागू है याने जो बात किसी को पता नहीं हो वह सबको पता चल जाती है जिससे उस क्षेत्र के, उस पक्ष की प्रतिष्ठा साख़ सहित सभी सकारात्मक स्थितियां नकारात्मकता में बदल जाती है जो उनकी बदहाली का कारण बनती है। परंतु हमें इस कहावत का अर्थ सकारात्मक में लेनें की ज़रूरत है। किसी गैर कानूनी या सृष्टि के किसी भी जीव को नुकसान या छल, धोखा पहुंचाने की दृष्टि से नहीं लेना चाहिए, यह नियम हर कहावत पर लागू होता है।

साथियों बात अगर हम इस कहावत के उदय की एक पौराणिक कहानी की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कुछ सज्जनों द्वारा यह कहानी डाली गई है कि, एक समय एक राज्य में राजा ने घोषणा की कि वह राज्य के मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा। इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की रंग रोगन और सजावट करना शुरू कर दिया, क्योंकि राजा आने वाले थे। इस खर्चे के लिए उसने दस हज़ार रुपए का कर्ज लिया। नियत तिथि पर राजा मंदिर में दर्शन, पूजा, अर्चना के लिए पहुंचे और पूजा अर्चना करने के बाद आरती की थाली में एक रुपया दक्षिणा स्वरूप रखें और अपने महल में प्रस्थान कर गए। पूजा की थाली में एक रुपया देखकर पुजारी बड़ा नाराज हुआ, उसे लगा कि राजा जब मंदिर में आएंगे तो काफी दक्षिणा मिलेगी। बहुत ही दुखी हुआ कि कर्ज कैसे चुका पाएगा, इसलिए उसने एक उपाय सोचा।

गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है। नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी में एक रुपया रखा पर मुट्ठी बंद रखी और किसी को दिखाई नहीं। लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हज़ार से शुरू हुई, बढ़ते बढ़ते पचास हज़ार रुपए तक पहुंची और पुजारी ने वो वस्तु फिर भी देने से इनकार कर दिया।

यह बात राजा के कानों तक पहुंची। राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और पुजारी से निवेदन किया कि वह मेरी वस्तु को नीलाम ना करें। मैं तुम्हें पचास हज़ार की बजाय एक लाख रुपए देता हूँ। इस प्रकार राजा ने एक लाख रुपए देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी इज्जत को बचाया।तब से यह कहावत बनी- बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की। यह मुहावरा आज भी प्रचलन में है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो फिर खाक की। पारिवारिक, सामाजिक, व्यवसायिक, राजनीतिक सहित अनेक क्षेत्रों के संदर्भ में बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की कहावत सटीक फिट है। भारतीय संस्कृति में बड़े बुजुर्गों की कहावतों की व्यवहारिक सटीकता हमारे दैनिक जीवन में प्रमाणित होती है।

 

*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ साहित्यकार स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*

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