सीतापुर संवाद सूत्र के अनुसार, 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने एक बार पुन: वर्तमान सांसद राजेश वर्मा पर विस्वास जताते हुए लगातार तीसरी बार चुनाव जीत दर्ज करके हैट्रिक लगानें की फिराक में है, तो वही सीतापुर के राजनैतिक विश्लेषकों का यह मत सामनें आ रहा है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस द्वारा ही राजेन्द्री बाजपेई यह कारनामा करनें में सफल रही हैं, ऐसे में यह कयास लगाए जा रहें हैं कि पूर्व के रिकॉर्ड टूटेंगे अथवा नहीं ये संशय बना हुआ है, हालांकि सत्तारूढ दल ने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और स्टार प्रचारकों को उतारनें में कोई कसर नहीं छोड़ा है,
सीतापुर के लहरपुर में गृहमंत्री अमित शाह, हरगांव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो रेउसा और बिसवां में उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की सभाएं हो चुकीं हैं तो वहीं सीतापुर सदर में उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का कार्यक्रम प्रस्तावित है,
गठबंधन के समर्थक यह कहते पाए जा रहें हैं कि वर्तमान सांसद राजेश वर्मा को एहसास हो गया है कि वह चुनाव हार रहे हैं,क्योंकि विगत दस वर्षों में विकास के नाम पर केवल सड़कों का निर्माण करा कर चुनाव जीतनें के ख्वाब तो नहीं सजा सकता?
क्या विगत दस वर्षों में सत्तारूढ दल के सांसद बालिकओं की उच्च शिक्षा के लिए जनपद में एक महाविद्यालय लानें में सफल रहे?
क्या शिक्षित नौजवानों के लिए रोजगार सृजन के लिए कोई उद्योग लगा?
और इन सवालों का जवाब निश्चित न में होगा, इसलिए जनता को रिझानें-लुभानें के लिए प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री सहित स्टार प्रचारकों की सभाएं करा कर हार का अन्तर कम करनें में जुटे हुए हैं,
हालांकि मतदाताओं में चुनाव के प्रति रूचि का कम होना चिंता का विषय अवश्य होना चाहिए और हालिया वोटिंग में उत्तर प्रदेश में सबसे कम मतदान प्रतिशत आखिर किस ओर संकेत कर रहें हैं यह तो आगामी 04 जून को पता चलेगा,
भाजपा के कार्यकर्ताओं की बाॅडी लैंग्वेज से लगता है कि जीत में कोई संदेह नहीं है और इस बार जीत का अन्तर दो लाख से अधिक मतों से होनें वाली है, लेकिन उत्तर प्रदेश में हुए मतदान का अनुपात बेहद निराशाजनक रहनें के सवाल पर अधिकांश कार्यकर्ता चुप्पी साध ले रहें हैं और इसी के साथ मतदान प्रतिशत कम होनें की स्थिति पर माथे पर बल पड़ रहे हैं, नाम उजागर न करनें की शर्त पर एक भाजपा नेता ने कहा कि इस चुनाव में परम्परागत भाजपा कार्यकर्ताओं में उस तरह का जोश नजर नहीं आता है जिस तरह का जोश विधानसभा चुनावों में था, यह कारण भाजपा के परम्परागत कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी हो सकती है, साथ ही अन्य दलों से आयातित कार्यकर्ताओं की दी जा रही तरजीह भी परम्परागत कार्यकर्ताओं को निराश कर रही है,
इन सभी परिस्थितियों के साथ ही भाजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा की हैट्रिक होती है अथवा नहीं यह देखना दिलचस्प होगा।