जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता व समाजसेवी कुलदीप कुमार उपाध्याय ने हमारे व्यूरो से बात करते हुए अधिवक्ताओं की मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त कि है उन्होंने कहा कि सरकारें हमेशा से समानता और समान अधिकारों का दावा करती हैं लेकिन जब अधिवक्ताओं की बात आती है तो शासन -प्रशासन दोहरा मापदंड अपनाने लगता है उन्हें आवास, स्वास्थ्य, बीमा योजना और पेशन जैसी अति आवश्यक और मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है और उस पर चर्चा तक करना मुनासिब नही है उन्होंने महान कवि और व्यंग्यकार दुष्यत कुमार त्यागी की कविता *कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए ,कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए* सुनाते हुए कहा कि लोगों को न्याय दिलाने के लिए अपना जीवन खपा देने वाले अधिवक्ताओं को ही आजादी के दशकों बाद भी आवश्यक सुविधाएं नही मिल सकी है जो दुर्भाग्यपूर्ण है और जिसके लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया है और यकीनन एक दिन जीत हमारी होगी, कुछ लोग जो हमारे संघर्ष के बारे मे कहते है कि सरकारें बहरी हैं और कुछ नही करेगी उनको मैं बताना चाहता हूँ जब तक हमारी माँगे नही मानी जायेगी यह वैचारिक टकराव जारी रहेगा।