
ब्राह्मण हर समुदाय को लाभ देते हुए खुद भूखे पेट सोया है। पं.अवध नारायण तिवारी
कुंठित मानसिकता की राजनीति करनेवाले ठेकेदारों का दिखला दिया चेहरा किया बेनकाब अहसास करवाया उनका स्वार्थ।
जौनपुर/ब्यूरो चीफ अरुण कुमार दूबे
जौनपुर अखिल राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा ‘रा’ के प्रदेश अध्यक्ष पंडित अवध नारायण तिवारी ने जनचौपाल पर जनसमुदाय को संबोधन करने के दौरान सर्व समाज के लिए जीवन उपयोगी सुंदर संदेश देते हुए कहा कि ब्राह्मण पर अंगुली उठाने वाले अग्यानी यह ध्यान रखें कि वह अंगुली उठाने पर कितनी अंगुली उन्हीं पर गलत होने का इसारा करती हैं जो खुद प्रमाणित हो जाते हैं कि वह ही खुद गलत हैं। प्रदेश अध्यक्ष ने कुंठित मानसिकता की राजनीति करनेवाले ठेकेदारों पर शब्द के बांण से वार करते हुए लोगों के उनके असली चेहरे को बेनकाब कर कराते हुए अहसास करवाया लोगों में इन ठेकेदारों का कैसा उनका स्वार्थ रहा है।
सत्य तो यह है कि शोषण वही कर सकता है जो समृद्ध हो और जिसके पास अधिकार हों अब्राह्मण को पढने से किसी ने नहीं रोका। श्रीकृष्ण यदुवंशी थे, उनकी शिक्षा गुरु संदीपनी के आश्रम में हुई, श्रीराम क्षत्रिय थे उनकी शिक्षा पहले ऋषि वशिष्ठ के यहाँ और फिर ऋषि विश्वामित्र के पास बल्कि ब्राह्मण का तो काम ही था सबको शिक्षा प्रदान करना। हां यह अवश्य है कि दिन-रात अध्ययन व अभ्यास के कारण, वे सबसे अधिक ज्ञानी माने गए, और ज्ञानी होने के कारण प्रभावशाली और आदरणीय भी। इसके कारण कुछ अन्य वर्ग उनसे जलने लगे, किंतु इसमें भी उनका क्या दोष यदि विद्या केवल ब्राह्मणों की पूंजी रही होती तो वाल्मीकि जी रामायण कैसे लिखते और तिरुवलुवर तिरुकुरल कैसे लिखते? और अब्राह्मण संतो द्वारा रचित इतना सारा भक्ति-साहित्य कहाँ से आता? जिन ऋषि व्यास ने महाभारत की रचना की वे भी एक मछुआरन माँ के पुत्र थे। इन सब उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि ब्राह्मणों ने कभी भी विद्या देने से मना नहीं किया।
जिनकी शिक्षायें हिन्दू धर्म में सर्वोच्च मानी गयी हैं, उनके नाम और जाति यदि देखी जाए, तो ‘ वशिष्ठ, वाल्मीकि, कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर, कबीरदास, विवेकानंद आदि’, इनमें कोई भी ब्राह्मण नहीं। तो फिर ब्राह्मणों के ज्ञान और विद्या पर एकाधिकार का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता ! यह केवल एक झूठी भ्रान्ति है जिसे गलत तत्वों ने अपने फायदे के लिए फैलाया, और इतना फैलाया कि सब इसे सत्य मानने लगे।
जिन दो पुस्तकों में वर्ण (जाति नहीं) व्यवस्था का वर्णन आता है उनमें पहली तो है मनुस्मृति जिसके रचियता थे मनु जो कि एक क्षत्रिय थे, और दूसरी है श्रीमदभगवदगीता जिसके रचियता थे व्यास जो कि निम्न वर्ग की मछुआरन के पुत्र थे। यदि इन दोनों ने ब्राह्मण को उच्च स्थान दिया तो केवल उसके ज्ञान एवं शील के कारण, किसी स्वार्थ के कारण नहीं। ब्राह्मण तो अहिंसा के लिए प्रसिद्ध हैं। पुरातन काल में जब कभी भी उन पर कोई विपदा आई, उन्होंने शस्त्र नहीं उठाया, क्षत्रियों से सहायता माँगी।
प्रदेश अध्यक्ष अवधनारायण तिवारी ने कहा बेचारे असहाय ब्राह्मणों को अरब आक्रमणकारियों ने काट डाला, उन्हें गोवा में पुर्तगालियों ने cross पर चढ़ा कर मारा, उन्हें अंग्रेज missionary लोगों ने बदनाम किया, और आज अपने ही भाई-बंधु उनके शील और चरित्र पर कीचड उछल रहे हैं। इस सब पर भी क्या कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखाई दी, क्या वे लड़े, क्या उन्होंने आन्दोलन किया? अरे क्या मां की कोख से पैदा बच्चा अगर चलने लगे और यह बोले की हंमे नही पकड सकते तो वह आग्यानता और बेवकूफी है जो पैदा किया उसे ही ग्यान देना सूरज को ही लालटेन दिखाना होगा ।
ठीक उसी तरह आदि काल से अबतक के हर परिस्थितियों में ब्राह्मण ने समाज के सभी वर्ग को सजाने सवारने तथा जीने के रास्ते और उनकी सुरक्षा के लिए अपना ही घर बार परिवार न्योछावर कर दिया ताजा उदाहरण प्रस्तुत करें तो याद करिए अंग्रेजों को जब सब देखकर पेशाब कर देते थे सामने उनका इतना अत्याचार था कि एकांत में भी विरोधी बात नहीं करते थे तब एक ब्राह्मण के शेर के रूप में मंगल पाण्डेय ने अंग्रेजों के पैंट में पेशाब छुडवा दिया। तो चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों को कुत्तों जैसे हालत कर समाज को सुरक्षित रखने के सपने को लिए अपना भरापूरा परिवार छोडकर मां भरतीय के लिए जान न्योछावर कर दिया। आज उसी ब्राह्मण से सर्व समाज व सर्व जातियां नफरत लिए, द्वेष जैसी भावना रखकर ब्राह्मण पर बोलने के लायक बन रही हैं। उन्हें यह पता होना चाहिए कि ब्राह्मण ने हमेशा सभी को एक धागे की माला में में जोड़ा है। ब्राह्मण दूसरों की भलाई के लिए नंगे पैर दौड़ा है, ब्राह्मण जहां भी वह खड़ा हुआ समाज में अपने साथ हर जातियों को पिरोए हुए उसने पहले अन्य जाती समुदाय के परिवार,उनके बच्चों,आदि के पेट भरने, सुख देने, लाभ देने,की हर बिंदुओं पर ध्यान देकर खुद खाली पेट सोया है। कुछ चंद लोग अपनी जातिवाद पार्टी बनाकर अपनी रोटी सेक रहे। अपना विकास कर समुदाय को जाती की राजनीति में मस्त कर खुद सर्व समुदाय के साथ भाईचारा निभाते हुए गलबहियां खेल रहे हैं। इनके द्वारा ही समुदाय में जाति का जहर घोलकर अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है। बल्कि उन्हीं के जात समुदाय जब विपत्ति आपत्ति आजती है तब वे न तो उन्हें पहचानते हैं न ही कोई मदद होती है। सहयोग करने के लिए कोई नहीं मिलता तो यही ब्राह्मण अंतिम सहयोग के रूप में नजर आता है। क्योंकि ब्रम्ह (ब्राह्मण) कभी सहयोग से विरक्त (दूर) नही रहा।