पति की हत्या कर प्रेमी संग रची एक्सीडेंट की साजिश, पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद तीन मासूम बच्चे हुए बेसहारा, किसी तरह कर रहे गुजारा

ऋषभ दुबे /नैमिष टुडे 

 

 

कन्नौज। कन्नौज जिले के एक गांव में दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई है। एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करवा दी और उसे सड़क हादसे का रूप देने की कोशिश की। लेकिन पुलिस की जांच में जब साजिश का पर्दाफाश हुआ तो पत्नी और उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। कोर्ट ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस घटना के बाद मृतक के तीन बच्चे पूरी तरह बेसहारा हो गए हैं।

 

मामला मैनपुरी जिले के बेबर थाना क्षेत्र के मलिकपुर गांव का है। यहां के रहने वाले हसमुद्दीन सब्जी विक्रेता थे। वह कन्नौज जिले के सौरिख थाना क्षेत्र के खडिनी और आसपास के गांवों में सब्जी बेचते थे। 27 अगस्त 2023 को वह खडिनी से घर लौट रहे थे, तभी रात करीब 8:30 बजे उनके भाई कुतुबुद्दीन को सूचना मिली कि विशुनगढ़ थाना क्षेत्र के सरइया तिराहे के पास हसमुद्दीन का शव सड़क किनारे पड़ा है।

 

कुतुबुद्दीन ने तत्काल 112 पर कॉल कर सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा और प्रथम दृष्टया मामला सड़क हादसे का मानते हुए रिपोर्ट दर्ज की गई। लेकिन जांच आगे बढ़ी तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

 

पत्नी और प्रेमी ने मिलकर रची थी हत्या की साजिश

 

पुलिस की गहन जांच में सामने आया कि हसमुद्दीन की हत्या उसकी पत्नी शहनाज बेगम ने अपने प्रेमी इरफान के साथ मिलकर करवाई थी। पूछताछ में शहनाज ने अपना गुनाह कबूल कर लिया। इसके बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

 

कोर्ट ने सुनाया फैसला

 

शासकीय अधिवक्ता नवीन दुबे के अनुसार, एडीजे-5 अजय कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने मामले में सुनवाई पूरी कर ली है। साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर कोर्ट ने शहनाज और इरफान को हसमुद्दीन की हत्या का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। साथ ही इरफान पर ₹35 हजार और शहनाज पर ₹20 हजार का जुर्माना भी लगाया गया है। जुर्माना न भरने पर छह महीने की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।

 

पिता की हत्या, मां जेल में — बेसहारा हुए तीन बच्चे

 

हसमुद्दीन और शहनाज के तीन बच्चे हैं — दो बेटे और एक बेटी। सबसे बड़ा बेटा 12 साल का है, जो पिता की हत्या के समय केवल 10 साल का था। मां और पिता दोनों के चले जाने के बाद तीनों बच्चे बेसहारा हो गए हैं। गांव में छोटे-मोटे काम कर और स्कूल के मिड-डे मील से किसी तरह पेट भर रहे हैं। कई बार भूखे पेट सोना भी पड़ता है।

 

प्रशासन से मदद की आस

 

पड़ोसियों और रिश्तेदारों का कहना है कि बच्चे बेहद कठिन हालात में जी रहे हैं। प्रशासन या बाल कल्याण समिति से अब तक कोई मदद नहीं पहुंची है। गांव वाले बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

 

यह घटना सिर्फ हत्या नहीं, बल्कि बच्चों के उजड़ते बचपन की भी मार्मिक कहानी है। अब देखना होगा कि प्रशासन और समाज इन मासूमों की मदद के लिए आगे आते हैं या नहीं।

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