जीटीआरआई द्वारा सिंगापुर, थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर विशेष गौर करने की सिफारिश को रेखांकित करना ज़रूरी
अमेरिका, ईयू सहित अनेक देश भारतीय योजनाओं को सब्सिडी के रूप में घोषित कर, प्रतिपूरक शुल्क लगाकर निर्यात्तकों को दंडित करने को रेखांकित करना ज़रूरी – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तर पर आज दुनियां में कई देश भारत के साथ व्यापार करने के लिए उत्साहित हैं और भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफडीए) करने के लिए बातचीत कर रहे हैं जिसमें ब्रिटेन के साथ करीब 12दौर की बैठके हो चुकी है। भारत अपने मिशन आत्मनिर्भर भारत की ओर तेजी से बढ़ रहा है तो स्वाभाविक ही है के घरेलू खपत के अलावा दुनियां के अनेक देशों में अपना माल बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा माहौल के बीच स्थान बनाना जरूरी है, जिसके लिए अनेक निर्यात स्कीम छूट सहित अनेक रणनीतिक पैसेज तैयार करने होंगे, इसके संबंध में वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल ने अनेक देशों के साथ जारी मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा करनेका प्रस्ताव किया है और व्यापक समीक्षा की सिफारिश की है, क्योंकि भारत अपनी अनेक वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने के लिए अनेक स्कीम्स योजनाएं चलता है, परंतु अमेरिका ईयू सहित अनेक देश इसे सब्सिडी के रूप में घोषित कर प्रतिपूरक शुल्क लगा देते हैं जो हमारे निर्यातकों को दंडित करने जैसा है। जीटीआरआई ने विशेष रूप से सिंगापुर और थाईलैंड के साथ एफडीए समझौता का मूल्यांकन करने की सिफारिश की है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, जीटीआरआई द्वारा सिंगापुर व थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर विशेष गौर करने की सिफारिश को रेखांकित करना ज़रूरी है।
साथियों बात अगर हम वैश्विक अनुसंधान पल द्वारा 26 नवंबर 2023 को दी गई सिफारिश की करें तो, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, यूरोपीय संघ (ईयू) और अमेरिका जैसे भारत के प्रमुख व्यापार साझेदारों सहित कई देश भारतीय योजनाओं को सब्सिडी के रूप में घोषित करते हैं और प्रतिपूरक शुल्क लगाकर निर्यातकों को दंडित करते हैं। वर्तमान में भारत निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए कई योजनाएं लागू कर रहा है। इनमें एडवांस ऑथराइजेशन स्कीम (एएएस), एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम (ईपीसीजीएस), ड्यूटी ड्रॉबैक स्कीम (डीडीएस), निर्यातित उत्पादों पर शुल्क व करों में छूट (आरओडीटीईपी), विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड), एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट (ईओयू), प्री-शिपमेंट एंड पोस्ट-शिपमेंट क्रेडिट बैंक और इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन स्कीम (आईईएस) शामिल हैं।इन योजनाओं का मकसद वैश्विक बाजार में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ानाहै। जीटीआरआई के सह संस्थापक ने कहा कि यूरोपीय संघ, अमेरिका और कई अन्य ने अक्सर इन योजनाओं को सब्सिडी के रूप में देखा है और भारत द्वारा अपने निर्यातकों को प्रदान किए जाने वाले मौद्रिक लाभों को बेअसर करते हुए प्रतिपूरक शुल्क लगाए है।इन देशों का पहला तर्क यह है कि ये योजनाएं विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सब्सिडी और प्रतिपूरक उपायों (एएससीएम) पर समझौते का उल्लंघन करती हैं। उन्होंने कहा, इन चुनौतियों के चलते भारत सरकार को एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इसमें निर्यात योजनाओं की संरचना में सुधार, डब्ल्यूटीओ में सक्रिय रूप से विवाद उठाना, योजनाओं की समयपूर्व निकासी का विरोध करना और सीमा शुल्क संरचना को तर्कसंगत बनाना शामिल हैं। कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने से सरकार को कई मौजूदा निर्यात योजनाओं की आवश्यकता में कटौती करने में मदद मिल सकती है। शोध संस्थान जीटीआरआई ने शुक्रवार को यह बात कही। उसके अनुसार, यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों के ढांचे के भीतर इन प्रोत्साहनों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
साथियों बात अगर हम जीटीआरआई द्वारा की गई सिफारिश में सिंगापुर थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता पर विशेष ध्यान देने की करें तो, सिंगापुर के साथ भारत के द्विपक्षीय एफटीए की व्यापक समीक्षा का प्रस्ताव दिया है, जिसमें व्यापक दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के समझौते के साथ मिलकर इसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। उन्होंने भारत के द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की व्यापक समीक्षा की सिफारिश की है, विशेष रूप से सिंगापुर और थाईलैंड के साथ समझौतों पर ध्यान केंद्रित किया है। जीटीआरआई का सुझाव है कि यह मूल्यांकन व्यापक दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ(आसियान) ब्लॉक के साथ मिलकर किया जाना चाहिए, जो क्षेत्रीय व्यापार गतिशीलता की परस्पर जुड़ी प्रकृति पर प्रकाश डालता है। भारत का सिंगापुर के साथ एक अलग एफटीए है जिसमें उत्पादों की उत्पत्ति के नियमों में अधिक ढील दी गई है। दोनों एफटीए का एक साथ अध्ययन किया जा सकता है। भारत का थाईलैंड के साथ एक अलग एफटीए है जिसे अर्ली हार्वेस्ट स्कीम (ईएचएस) कहा जाता है, जिसमें भारत आसियान एफटीए की तुलना में मूल नियमों में छूट दी गई है। ईएचएस के जरिए पर्याप्त आयात हो सकता है। दोनों एफटीए का एक साथ अध्ययन किया जा सकता है।भारत का 2010 से 10 देशों के आसियान गुट के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) है, जिसमें सिंगापुर भी शामिल है। इसके अतिरिक्त, भारत ने 2005 में सिंगापुर के साथ एक अलग व्यापक एफटीए लागू किया। 2006 में अर्ली हार्वेस्ट स्कीम’ (ईएचएस) के तहत थाईलैंड के साथ एक सीमित एफटीए पर हस्ताक्षर किए गए थे। सुझाव है कि आसियान में सिंगापुर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए,दोनों समझौतों की सामूहिक रूप से जांच की जाए। सिंगापुर और थाईलैंड के साथ भारत के अलग-अलग एफटीए की विशिष्ट विशेषताएं हैं। सुझाव यह है कि शर्तों की बारीकियों को पहचानते हुए, इन दोनों एफटीए का एक साथ विश्लेषण किया जाए। भारत और आसियान पहले ही अपने व्यापार समझौते की समीक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसका लक्ष्य 2025 तक पुनर्मूल्यांकन समाप्त करना है।आसियान ब्लॉक में ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। विशेष रूप से, पांच देश इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम-आसियान के साथ भारत के व्यापार में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जिनका निर्यात 92.7 प्रतिशत और आयात 97.4 प्रतिशत है। ये सुझाव महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत और आसियान देश अपने व्यापार समझौते की समीक्षा करने पर सहमत हुए हैं। 2025 तक इस अभ्यास को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।वित्त वर्ष 2008-09 में आसियान को भारत का निर्यात 19.1 अरब अमेरिकी डॉलर था और 2022-23 में यह बढ़कर 44 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। दूसरी ओर, 10 देशों के समूह से आयात पिछले वित्त वर्ष में बढ़कर 87.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2008-09 में 26.2 अरब अमेरिकी डॉलर था। भारत और आसियान व्यापारिक संबंधों में बदलती गतिशीलता और समायोजन की आवश्यकता को पहचानते हुए 2025 तक अपने व्यापार समझौते की समीक्षा करने के लिए पारस्परिक रूप से सहमत हुए हैं। इस समीक्षा में सभी आसियान सदस्य देश शामिल हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पर्यावरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वैश्विक व्यापार अनुसंधान पहल (जीटीआरआई) ने भारत के द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों की व्यापक समीक्षा की सिफारिश की जीटीआरआई द्वारा सिंगापुर, थाईलैंड के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर विशेष गौर करने की सिफारिश को रेखांकित करना ज़रूरी।अमेरिका, ईयू सहित अनेक देश भारतीय योजनाओं को सब्सिडी के रूप में घोषित कर, प्रतिपूरक शुल्क लगाकर निर्यात्तकों को दंडित करने को रेखांकित करना ज़रूरी है
*- संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*